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तुलसी शब्द-कोश
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मुकुताहल : मुकताहल । 'बिथुरे नभ मुकुताहल तारा ।' मा० ६.१२.३ मुकुताहलनि : मुकुताहल + संब० । मुक्ता फलों (के) । 'आलबाल मुकुताहलनि ।'
दो० ३०१ मुकृति : मुक्ति । मा० १.१६.३ मुकर : सं०० (सं०) । दर्पण । मा० १.१.४ मुकरु : मुकर+कए । एक दर्पण । 'म कुरु कर लीन्हा ।' मा० २.२.६ मुक्ख : मुख । 'परत दसकंध मुक्ख भर ।' कवि० १.११ मुक्त : वि० (सं०) । बन्धनरहित, जन्म-मरणरहित, मोक्षप्राप्त । मा० ३.३६ मुक्तकृत : वि० (सं० मुक्तकृत)। मुक्त करने वाला-वाले । विन० ५०.४ मुक्ता : मुकता (सं०) । मोती। गी०.१.१०८.६ मुक्ति : सं०स्त्री० (सं.)। (१) छुटकारा, स्वतन्त्रता। (२) दार्शनिक दृष्टि से
संसार से छुटकारा। इस मुक्तदशा के चार प्रकार हैं-(क) सायुज्य= परमेश्वर और जीव की अभेद दशा । 'सो साजुज्य मुक्ति नर पाइहि ।' मा० ६.३.२ (ख) सारूप्य = ईश्वर के समान रूप की प्राप्ति जिसमें सर्वकर्तत्व को छोड़कर सभी कल्याणगुण जीव में आ जाते हैं। (ग) सालोक्य = ईश्वर लोक की प्राप्ति । (घ) साष्टि-ईश्वरवत् ऐश्वर्य की प्राप्ति। चारों ही परस्पर पूरक हैं—केवल पक्षभेद है। 'ऋषि सिद्धि कल्यान मुक्ति नर पावइ हो।'
रान० २० मुख : सं०० (सं.)। (१) वदन । 'मुख आव न बाता।' मा० १.७३.८
(२) मुखाकार, चेहरा । 'निज मुख मुकुर बिलोकहु जाई ।' मा० १.१३५.६ ।। मुखछबि : (१) मुख की शोभ । (२) मुख का बिम्ब । 'मुखछबि कहि न जाइ ___ मोहि पाहीं।' मा० १.२३३.६ मुखनि : मुख+संब० । मुखों (से)। 'निज निज मुखनि कही निज होनी ।' मा०
मुखर : वि० (सं.)। (१) वाचाल, व्यर्थ अधिक बोलने वाला । 'मुख र मानप्रिय
ग्यान गुमानी।' मा० २.१७२.६ (२) शब्दकारी। 'जनु खग मुखर ।' मा०
१.१६५.७ (३) शब्द, रव । मुखरकारी : वि० । शब्द करने वाला। 'नपुर बर मधुर मुखरकारी ।' गी०
१.२५.३ मुखहिं : मुखों से । 'मुखहिं निसान बजावहिं भेरी ।' मा० ६.३६.१ मुखागर : वि०+सं०० (सं० मुखागर)। जबानी, पत्रादि के बिना केवल मुख
__ से कहा हुआ सन्देश । मा० ५.५२ मुखारविंद : (१) कमल (अरविन्द) सदृश विकासयुक्त मुख । गी० १.३८.५
(२) मुखरूपी कमल । 'पियत राम मुखारबिंद मरंद।' गी० ७.२३.३
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