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तुलसी शब्द-कोश
मीठ, ठा: वि०पु० (सं० मिष्ट, मृष्ट > प्रा० मिट्ठ) मीठा, मधुर ( चिकना ) । 'मन
मलीन मुह मीठ नृप । मा० २.१७
मीठ, ठी : वि०स्त्री० (सं० मिष्टा, मृष्टा > प्रा० मिट्टी ) । मधुर । मा० १.२६०.५ मीठे : वि०पु०ब० ( प्रा० मिट्ठ = मिट्ठय ) । मधुर, प्रिय । मुख मीठे मानस मलिन ।' दो० २६६
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मीठो : मीठा + कए० ( अ० मिट्ठउ) । मीठो अरु कठवति भरो । दो० १५ मीत : सं०पु० (सं० मित्र > प्रा०मित्त ) । सुहृद्, सखा, स्वपक्षी । मा० १४ मी : मीत + कए० । अद्वितीय मित्र । 'माधव सरिस मीतु हितकारी ।' मा०
२.१०५.३
मीन : (१) सं०पु० (स्त्री०) (सं० ) । मत्स्य । मा० १.२२ ( २ ) नक्षत्र राशिविशेष । 'कोढ़ में की खासी सनीचरी है मीन की ।' कवि० ७.१७७
मीनता : सं० स्त्री० (सं० ) । मत्स्यभाव ( जैसा प्रेम मछली जल से करती है और जलधारा के सम्मुख बहती है, उसी प्रकार का अनन्य तथा आराध्यमुखी प्रेम ) । ' सीतापति भक्ति सुरसरि नीर मीनता ।' विन० २६२.५
मीनराउ : (दे० राउ) मीनराज, महामच्छ । विन० १५२.६
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मीना : मीन । मा० १.२७.४
मीनु : मीन + कए० । अकेला मत्स्य । 'मीनु दीन जनु जल तें काढ़ें ।' मा०
२.७०.३
मोला : मिला । संयुक्त । 'खेल गरुड़ जिमि अहिगन मीला ।' मा० ६.६६.१ मोसी : भूकृ० स्त्री० । (१) मिश्रित – शकर, मक्खन आदि में मिलाई हुई । (२) मींजी हुई, मसल कर छोटे टुकड़ों में की हुई । 'छोटी मोटी मीसी रोटी ।"
कृ० २
मुंदरी : मुदरी । रा०प्र० ३.७.१
मुंह : (१) मुहँ । 'मह भरि भरत न भूलि कही ।' गी० ७.३७.१ ( २ ) मुख से ! 'अपने मुँह तुम्ह आपनि करनी बरनी । मा० १.२७४.६
मुँहभरि : ठीक से, पूर्णतः बोलकर । गी० ७.३७.१ मुहाचाही : संस्त्री० । परस्पर ( असमर्थता - सूचक) आनाकानी, कंठहँसी, मुहाचाही होन लागी ।' गी० १.८४.८
मुंज : सं०पु० (सं० ) । मूज, सरकण्डा ।
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मुंजाटवी : (मुज + अटवी ) मूज का वन । विन० ५५.६ मुंड : सं०पु० (सं० ) । सिर, कपाल । मा० ६.४४
' : वि० (सं० ) । मुण्डों से परिव्याप्त । मा० २.१ २.२
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मुख देखने की क्रिया |
मुंडमाल : कपाल-माला | कवि० ७.१४ε
मुंडित भूकृ०वि० (सं० ) । मुड़ाए हुए, केश सफाचट कराये हुए । मा० ५.११.४