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तुलसी शब्द-कोश
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महबीर : (१) अत्यन्त शूर । 'महाबीर बलवान ।' मा० १.१२२ (२) हनुमान ।
मा० १.१७.१० महावृष्टि : अतिवृष्टि, अतिशय वर्षा । मा० ४.१५.७ महाब्याल : बहुत बड़ा सर्प । गी० १.६२.३ महामट : महाबीर । मा० ५.१६.६ महाभटमानी : (दे० भटमानी)। अपने को बहुत बड़ा वीर समझने वाला (वीर
पुरुषम्मन्य) । 'अहो मुनीसु महाभटमानी ।' मा० १.२७३.१ महाभव : अनेक बड़े जन्म । विन० १३६.६ महाभूत : (दे० महदादि) प्रपञ्च के स्थूल तत्त्व-पृथ्वी, जल, तेज, वायु और
आकाश । (२) बड़े भूत (पिशाचादि)। कवि० ७.१२६ महाभूतन : महाभूत+संब० । महाभूतों (बड़े जीवों, पिशाचादिकों, पञ्चभूतों)।
'कालहू के काल महाभूतन के महाभूत ।' कवि० ७.१२६ महामंत्र : बीजमंत्र । विन० १०८.२ महामंद : अति दुद्धि, अत्यन्त नीच, अतिशय मूढ़ । मा० ३.३६ महासख : (१) बड़ा यज्ञ। (२) पञ्च महायज्ञ-(क) ऋषियज्ञ = स्वाध्याय ;
(ख) देवयज्ञ-होम; (ग) पित यज्ञ =श्राद्ध-तर्पण; (घ) नरयज्ञ = आतिथ्य;
(ङ) भूतयज्ञ = काक, श्यान, गो इत्यादि को भोजन देना । कवि० ७.५५ महामति : अति बुद्धिमान् । गी० ५.२४.१ महामत्त : अतिशय मतवाला । मा० १.२५६ महामद : अतिशय अहंकार रूपी बड़ा नशा । गी० ५.२४.२ ।। महामनि : (१) बहुमूल्य रत्न । 'भूषन बसन महामनि नाना।' मा० १.३०५.४
(२) स्वर्ग की मणि (चिन्तामणि)। 'मंत्र महामनि बिषय ब्याल के । मेटत
कठिन कुअंक भाल के ।' मा० १.३२.६ महामाया : सं०स्त्री० (सं.)। राम-ब्रह्म की आदि शक्ति (सीता) जो ब्रह्मा, विष्णु
तथा शिव की शक्ति के रूप म त्रिधा विभक्त होती है- महासरस्वती, महालक्ष्मी और महाकाली । जीवों के साथ वही ब्यामोहिका माया (अविद्या) का
रूप लेती है । 'भजिअ महामाया पतिहि ।' मा० १.१४० महामारिन्ह : महामारी+ संब० । महामारियों। 'देवता निहोरे महामारिन्ह सों
कर जोरे।' कवि० ७.१७५ महामारिही : महामारी ही। 'संकट सरोष महामारिही तें जानियत ।' कवि०
७.१८३
महामारी : सं०स्त्री० (सं०) । दूर तक फैलने वाला (संसर्गज) रोग-प्लेग, हैजा
आदि । कवि० ७.१७३ महामोद : अति हर्ष । मा० १.३१५.४
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