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तुलसी शब्द-कोशः
मचत : वकृ० (सं० मचमान-मच कल्कने-कल्कनं दम्भः शाठ्यं च>प्रा०
मच्चंत) । मचता=सघनता के साथ आडम्बरपूर्वक हो रहा । गी० ७.१६.४ मचला : भूकृ०० । मचल गया, हठ कर बैठा (बच्चों के समान लोट गया)।
'हौं मचला ले छोड़िहौं, जेहि लागि अर्यो हौं।' विन० २६७.३ मचलाई : सं० स्त्री० । मचल, बचकाना हठ । 'सागर सन ठानी मचलाई ।' मा०
मचा : भूकृ०० (सं० मचित>प्रा० मच्चिअ) । मच गया, व्याप्त हुआ । 'सब __लंक ससंकित सोरु मचा।' कवि० ६.१५ मची : भूकृस्त्री० । मच गयी, लगातार हो चली । मा० १.१६४.८ मच्छर : मत्सर (प्रा०) । 'लोभ मोह मच्छर मद माना।' मा० ५.४७.१ मजा : सं०पु० (सं० मज्जन - मज्जा-हड्डी के भीतर का सार)। वृक्षादि के
भीतर के सार से बना हुआ वर्षा का फेन जो मछली के लिए विषाक्त होता
है । 'दीन मलीन छीन तनु डोलत, मीन मजा सों लागे।' कृ. ३५ मजूरी : सं०स्त्री० (फा० मज्दूरी) । दैनिक पारिश्रमिक पर सेवावत्ति । मा०
२.१०२.६ मज्जत : वकृ.पु. (सं० मज्जत्>प्रा० मज्जंत) । डुबकी लगाता-ते । 'मज्जत पय
पावन पीवत जलु ।' विन० २४.५ मज्जन : सं०० (सं.)। डुबकी, स्नान । मा० १.३.१ मज्जनु : मज्जन+कए । 'सोइ सादर सर मज्जन करई ।' मा० १.३६.६ मज्जसि : आ०मए० (सं० प्रा०) । डुबकी लेता है, तू नहाता है। 'तहँ मगन
मज्जसि पान करि ।' विन० १३६.२ महिं : प्रा०प्रब० (अ०) । डुबकी लेते हैं, नहाते हैं । 'मज्जहिं सज्जन बृद बहु
पावन सरजूनीर ।' मा० १.३४ मज्जा : सं०स्त्री० (सं.) । अस्थि-सार; हड्डी के भीतर का पीला सत्त्व ।' मा०.
६.८७ मज्जि : पूकृ० (अ०) । बुड़की लेकर, नहाकर । 'मकर मज्जि गवनहिं मुनिबृदा।'
मा० १.४५.२ मज्जित : भूकृ०वि० (सं०) । डुबाया हुआ । 'बिनु अवगुन कृकलास कूप मज्जित ____ कर गहि उधर्यो।' विन० २३६.३ मझारी : क्रि०वि० (सं० मध्ये>प्रा. मज्झआरे>अ० मज्झआरि) । में, मध्य में,
बीच में । 'कदि परा कपि सिंधु मझारी।' मा० ५.२६.८ मटुको : सं०स्त्री० (सं० मटची, मातिकी)। मृत्पात्र, मिट्टी का घड़ा या विशेष
प्रकार की गगरी । कृ० ४० मठी : सं०स्त्री० (सं०) । मठ, आगार, आवास । गी० १.५.३
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