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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 816 तुलसी शब्द-कोश (५) (समासान्त में) वि० । अभिन्न, तत्स्वरूप, एकरूप । 'पद-द्वंद्व मंदाकिनी मूलभूतं ।' विन० ४६.५ भूतगन : प्रेत-पिशाच सदृश शक्तियों का समूह । 'भजहिं भतगन घोर ।' मा० २.१६७ भूतजनित : भूत-प्रेत आदि से उत्पन्न । 'व्याधि भूतजनित ।' हनु० ४३ भूत-द्रोह : प्राणियों के प्रति वैरभाव । भूत-द्रोह तिष्टइ नहिं सोई।' मा० ५.३८.७ भूतनाथ : (१) सं०० (सं०)। सभी जीवों (चराचर) के स्वामी शिव जी । कवि० ७.१५२ (२) शिवावतार हनुमान् । हनु० ४३ ।। भूतनि : भूत+संब० । भूतों=प्राणियों (चराचर द्रव्यों) । "भूतनि की आपनी पराये की।' हनु० ३७ भूतभव : वि०पु० (सं०) पञ्च भूतों तथा जीवों की उत्पत्ति के कारण। कवि० ७.१६८ भूतमय : वि०० (सं.)। सभी जीवों तथा चराचर में व्याप्त =अन्तर्यामी। 'ईस्वर सर्ब-भूतमय अहई ।' मा० ७.११०.१५ भूतल : सं०० (सं.)। पृथ्वी मण्डल। मा० १.१ भूता : भूत । पिशाचादिसदश । 'परिजन जनु भूता ।' मा० २.८३.७ भूति : सं०स्त्री० (सं.)। (१) विभूति, ऐश्वर्य, वैभव । (२) अष्ट सिद्धियां अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व । 'मति कीरति गति भूति भलाई।' मा० १.३.५ (३) भस्म, राख । 'भुजग भूति भूषन त्रिपुरारी।' मा० १.१०६.८ भूतिभूषन : भस्मरूप अलंकार वाले शिव । कवि० ७.१५२ भूतिमय : वि० (सं०) ऐश्वर्य सम्पन्न+पिद्धियों से युक्त । 'कीरति सुगति भूतिमय बेनी ।' मा० २.३०६.४ भूधर : (१) सं०० (सं.)। पर्वत (पृथ्वी को धारण करने, संभालने वाला)। मा० ६.५३.३ (२) शेषनाग+शेषावतार लक्ष्मण । विन० ३८.१ (३) पृथ्वी पालक । मा० ७.३४.४ भूधरण : भूधर (गोवर्धन पर्वत)। 'भूमि उद्धरण, भूधरणधारी।' विन० ५६.२ भूधरसुता : पार्वती । मा० २ श्लोक १ भूधराकार : पर्वताकार, पहाड़ जैसी आकृति वाला (विशाल)। कनक-भूधराकार सरीरा।' मा० ५.१६.८ भूधराधिप : पर्वतराज =हिमालय (कैलास) । विन० ११.४ भूनंदिनी : भूमिपुत्री=सोता । विन० २५.५ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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