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तुलसी शब्द-कोश
(५) (समासान्त में) वि० । अभिन्न, तत्स्वरूप, एकरूप । 'पद-द्वंद्व मंदाकिनी
मूलभूतं ।' विन० ४६.५ भूतगन : प्रेत-पिशाच सदृश शक्तियों का समूह । 'भजहिं भतगन घोर ।' मा०
२.१६७ भूतजनित : भूत-प्रेत आदि से उत्पन्न । 'व्याधि भूतजनित ।' हनु० ४३ भूत-द्रोह : प्राणियों के प्रति वैरभाव । भूत-द्रोह तिष्टइ नहिं सोई।' मा०
५.३८.७
भूतनाथ : (१) सं०० (सं०)। सभी जीवों (चराचर) के स्वामी शिव जी ।
कवि० ७.१५२ (२) शिवावतार हनुमान् । हनु० ४३ ।। भूतनि : भूत+संब० । भूतों=प्राणियों (चराचर द्रव्यों) । "भूतनि की आपनी
पराये की।' हनु० ३७ भूतभव : वि०पु० (सं०) पञ्च भूतों तथा जीवों की उत्पत्ति के कारण। कवि०
७.१६८ भूतमय : वि०० (सं.)। सभी जीवों तथा चराचर में व्याप्त =अन्तर्यामी।
'ईस्वर सर्ब-भूतमय अहई ।' मा० ७.११०.१५ भूतल : सं०० (सं.)। पृथ्वी मण्डल। मा० १.१ भूता : भूत । पिशाचादिसदश । 'परिजन जनु भूता ।' मा० २.८३.७ भूति : सं०स्त्री० (सं.)। (१) विभूति, ऐश्वर्य, वैभव । (२) अष्ट सिद्धियां
अणिमा, महिमा, लघिमा, गरिमा, प्राप्ति, प्राकाम्य, ईशित्व और वशित्व । 'मति कीरति गति भूति भलाई।' मा० १.३.५ (३) भस्म, राख । 'भुजग भूति
भूषन त्रिपुरारी।' मा० १.१०६.८ भूतिभूषन : भस्मरूप अलंकार वाले शिव । कवि० ७.१५२ भूतिमय : वि० (सं०) ऐश्वर्य सम्पन्न+पिद्धियों से युक्त । 'कीरति सुगति भूतिमय
बेनी ।' मा० २.३०६.४ भूधर : (१) सं०० (सं.)। पर्वत (पृथ्वी को धारण करने, संभालने वाला)।
मा० ६.५३.३ (२) शेषनाग+शेषावतार लक्ष्मण । विन० ३८.१ (३) पृथ्वी
पालक । मा० ७.३४.४ भूधरण : भूधर (गोवर्धन पर्वत)। 'भूमि उद्धरण, भूधरणधारी।' विन० ५६.२ भूधरसुता : पार्वती । मा० २ श्लोक १ भूधराकार : पर्वताकार, पहाड़ जैसी आकृति वाला (विशाल)। कनक-भूधराकार
सरीरा।' मा० ५.१६.८ भूधराधिप : पर्वतराज =हिमालय (कैलास) । विन० ११.४ भूनंदिनी : भूमिपुत्री=सोता । विन० २५.५
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