________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
814
तुलसी शब्द-कोश भुजनि, न्हि : भुज+संब० । भुजाओं। 'भुजन्हि समेत सीस महि पारे ।' मा०
६.६२.१० भुजबल : बाहुबल (युद्धशक्ति) । मा० १.१३६.६ भुजबलु : भुजबल+कए । एकीभूत बाहुबल । 'नृप भुजबलु बिधु सिवधनु राहू ।'
मा० १.२५०.१ भुजबल्ली : (सं भुजवल्ली) । लता के समान (कम्पशील) सुकुमार बाहु । 'चालति __न भुजबल्ली।' मा० १.३२७ छं०३ भुजमूले : (सं० पद) बाहुमूल में । गी० ७.१२.५ भुगाँ : भुजाओं में । 'बीस भुजां दस चाप ।' मा० ६.८१ भुजा : भुज । मा० ६.६८.६ भुबि : भूमि । 'हरि भंजन भुबि भार।' मा० १.१३६ भुलाई : पूर्व० । भूलकर, भटकर । 'फिरत अहेरें परेउँ भुलाई।' मा० १.१५६.६ भुलान, ना : भूक०पु । भ्रान्त, भटका हुआ। 'तव माया बस फिरउँ भुलाना ।'
मा० ४.२.६ भुलानि, नी : भूकृ०स्त्री० । भटकी, भ्रान्त हुई। 'भूप बिकल मति मोहँ भुलानी ।'
मा० १.१७३.८ भुलाने : भूकृ००ब० । भूले, भ्रान्त हुए, मोह में पड़े। 'लच्छन तासु बिलोकि ___ भुलाने ।' मा० १.१३१.२ भुलाब : भकृ.पु । भूलना, भटकना । 'मिलब हमार भुलाब निज ।' मा०
भुलावा : भूकृपु । भटकाया, भ्रान्त किया। 'जेहिं सूकर होइ नृपहि भुलावा ।'
मा० १.१७०.३ भुलाहु : आ०मब० । भूलो, भ्रम में पड़ो । 'जनि आचरज भुलाहु ।' मा० १.३१४ भुव : सं०स्त्री० (सं० ध्रुवी)। भौंहैं । 'नि.संक बंक भुव ।' हनु० १ भुवन : सं०० (सं.)। लोक । (१) स्वर्ग-मर्त्य-पाताल को मिलाकर त्रिभुवन
कहे जाते हैं। कृ० ६१ (२) सात ऊर्ध्व-भूः, भुवः, स्वः, महः, जन:, तपः, सत्यम् (अथवा-पंशाच, राक्षस, याक्ष, गान्धर्व, ऐन्द्र, सौम्य, प्राजापत्य, ब्राह्म) तथा सात अधोलोक-तल, अतल, वितल, सुतल, तलातल रसातल, पाताल
मिलाकर चौदह भुवन । 'भुवन चारिदस भूधर भारी।' मा० २.१.२ भुवनकोस : (सं० भुवनकोश) । ब्रह्माण्ड, चौदहों भुवनों का समग्र रूप । विन०
२५८.२ भवनाभिराम : (१) सम्पूर्ण लोकों में सर्वाधिक सौन्दर्य सम्पन्न । (२) जिसमें
सभी लोक सर्वात्मना रमण करते हैं =सर्वाधार, परमेश्वर । विन० ४६.२ भवनेश : (सं०) सभी लोकों का स्वामी । विन० ३८.१
For Private and Personal Use Only