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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 811 भास्कर : सं०० (सं.)। सूर्य । मा० ३ श्लो० १ मिडिपाल : सं०० (सं० भिन्दिपाल)। एक प्रकार का छोटा भाला जो फेंक कर मारा जाता है । मा० ६.४०.७ भिखारि, री : वि.पु.० (सं० भिक्षाकारिन् >प्रा. भिक्खारि, री)। भिक्षुक, भिक्षाटन करने वाला । मा० १.१६०; ३.१७.१५ मिजई : भूक०स्त्री० । भिगोयी, सींच दी । 'करुना बारि भूमि भिजई है।' विन० १३६.१० मितहौं : आ०-भ० उए । भीत होऊंगा, डरूंगा। "प मैं न भितहौं ।' कवि० ७.१०२ भितही : आ० भ०मब० । भीत होओगे, डरोगे। 'जो लघुतहि न भितहो।' विन० २७०.२ भिनुसार, रा : सं०० (सं० भिन्नोषःकाल>प्रा० भिन्नुसाल ?)। प्रभात की ___ लाली फूटने का समय, सबेरा । मा० २.२१५; २.३७.५ भिन्न : भूकृ०वि० (सं.)। (१) अलग, पृथक्, विविक्त । 'कहिअत भिन्न न भिन्न ।' मा० १.१८ (२) काटकर अलग । 'धर तें भिन्न तासु सिर कीन्हा ।' मा० ६.७१.४ (३) विविध । 'भिन्न भिन्न अस्तुति ।' मा० ७.१२ ख (४) अन्य, अन्य प्रकार का। 'लोक लोक प्रति भिन्न बिधाता ।' मा० ७.८१.१ भिन्नमभिन्न : (सं० भिन्नम् +अभिन्न) । पृथक् तथा अपृथक् । पृथक् भासित होकर भी एकरूप । 'रबि आतप भिन्नमभिन्न जथा।' मा० ६.११.१६ भिन्नसेतु : वि० (सं०) । मर्यादा रहित (सेतु =मर्यादा, सीमा); आचारसंहिता की सीमा तोड़े हुए; नियमहीन । 'भिन्नसेतु सब लोग ।' मा० ७.१०० क मिया : भैया (अरे मेरे भाई)। 'मो पर कीबी तोहि जो करि लेहि भिया रे।' विन० ३३.१ मियो : भूकृ० ०कए० (सं० भीत:>प्रा० भीओ) । डरा हुआ। 'सकुचि सहमि सिसु भारी भय भियो है।' कृ. १६ भिरउँ : आ० उए । भिड़ता हूं, संघर्षरत होता हूं। 'जब जब भिरउँ जाइ बरिआई ।' मा० ६.२५.५ मिरत : वकृ० । भिड़ता-ते, संघर्ष करता-करते । सो अब भिरत काल ज्यों।' मा० ६.६४ मिरहिं : आ०प्रब० । भिड़ते हैं, संघर्ष करते हैं । 'एक एक सन भिरहिं पचारहिं ।' मा० ६.८१.४ मिरिहि : आ०भ०ए० । भिड़ेगा, संघर्ष में ठहरेगा। 'मो सन भिरिहि कौन जोधा बद।' मा० ६.२३.१ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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