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तुलसी शब्द-कोश
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भाति : आ०प्रए० (सं.)। प्रतीत होता है । मा० १ श्लोक ६ भाथ, था : सं०स्त्री० (सं० भस्त्रा>प्रा० भत्था)। (१) तूणीर, तरकस । मा०
१.२५३ (२) तूणीर के साथ का कमरबन्द । 'कटि पट पीत कसे बर भाया ।'
मा०१.२०८.१ माथों : भाथी+ब० । तरकसें । 'भाथीं बांधि चढ़ाइन्हि धनहीं ।' मा० २.१६१.४ भाथी : भाथ । मा० २.६०.४ भादव, भादो, दो : सं०पु० (सं० भाद्रपद>प्रा० भद्दवअ) । वर्षा ऋतु का दूसरा
महीना। मा० १.१६; कृ० २६ भान : भान । गी० २.४४.२ मानन : भंजन । 'खल दल बल भानन ।' हनु० २ माननी : भंजनि । गी० ७.५.४ मानस : सं०० (सं० महानस, माहानस) । सूपकार, रसोइया । मा० ३.२६.४ मानि : भंजि । तोड़कर । 'रोक्यो परलोक लोग भारी भ्रम भानि के ।' कवि०
भानिह : आ०भ०प्रब० । तोड़ेगे । 'राम' संभु सरासन भानिहैं ।' गी० १.८०.६ मानिही : आ०भ०मब० । भङ्ग करोगे। 'सरनागत भय भानिहो ।' विन० २२३.४ मानी : भूकृ०स्त्री० । तोड़ी, नष्ट कर दी। 'सभ के सकति संभु धनु भानी।' मा०
१.२६२.६ 'भानु : सं०पू० (सं.)। (१) सूर्य । मा० १.१६.१ (२) किरण । जैसे, हिमभानु ।
'भानुकुल भानु को प्रताप भानु-भानु सो।' कवि० ५.२८ (३) सूर्यवत्
प्रतापशाली । 'भानुकुल भानु ।' भानुकर : सूर्य-किरण । मा० १.११७ भानुकुल : सूर्यवंश जिसमें राम का जन्म हुआ। मा० २.४१.५ भानुकूलकेतु : सूर्यवंश में पताका के समान सर्वोपरि । कवि० ६.३ भानुजान : सूर्य का रथ (दे० जान) । मा० १.२६६.४ भानुप्रताप, पा : एक राजा का नाम । मा० १.१७१.७; १.१६६.३ मानुबंस : भानुकुल । मा० २.२५५.५ भानुमंडल : सूर्य-बिम्ब । गी० ७.१७.३ भानुमंत : सं०+वि०पु० (सं० भानुमत् >प्रा० भाणुमंत)। (१) सूर्य । 'भूरि
भूषन भानुमंत ।' विन० ५६.२ (२) किरणों (भानु) से सम्पन्न, प्रकाशपूर्ण ।
कवि० ७.१५२ भानू : भानु । मा० २.४१.५
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