________________
Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra
www.kobatirth.org
Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir
800
तुलसी शब्द-कोश
भवपीर : संसार के क्लेश। विन० ६३.५. भव-बंधन : भवपास । विन० १६६.३ भव-बासना : संसार की वासना; जन्म-मरण देने वाली कर्मफलों की भावना,
सांसारिक विषयों का आकार लेने वाली चित्तवृत्ति । विन० ४७.३ भवबेगारि : (दे० बेगारि) । बेगार के समान निष्फल संसार। 'नाहिं त भव-बेगारि
मह परिहै ।' विन० १८६.१ भवभंग : संसार का खण्डन । ‘सैलसृग भवभंग हेतु ।' विन० २४.२ भवमक्त : शिवजी के भक्त । विन० ५६.२ भवभय : संसार का भय, जन्म-मरण आदि क्लेशों का त्रास । मा० १.२४.६ भवभाजन : संसार का पात्र, आवागमन का अधिकारी । 'तातें भवभाजन भयो।"
विन० १६०.१ भवमाननी : संसार (आवागमन) को मिटाने वाली । गी० ७.५.४ भवभामा : शिव-पत्नी पार्वती । मा० १.१००.७ भवमामिनी : भवभामा । विन० १८.५ भवभार : संसार रूपी भार+संसार का भार । विन० १७.२ भवभावते : शिवजी के इष्टदेव । 'सुनियत भवभावते राम हैं।' गी० १.८०.३ भवभीर : भवभय । कवि० ७.४६ भवभूषनु : वि.पु.कए । विश्व का एकमात्र अलंकरण, प्रसिद्ध । 'पूषन सो भव
भूषनु भो।' कवि० ७.४२ भवभेद : सांसारिक भेदभाव, मायाजनित द्वैत (जो एक तत्त्व से निर्मित पदार्थों का
अलगाव तथा ब्रह्म से उसकी पथकता भासित कराता है)। उपादान तत्त्व से
कार्य (संसार) तत्त्व को पृथक् भासित कराने वाला द्वैत । विन० ६४.१ भवमग : संसार का मार्ग, आवागमन रूपी कर्मफलों का मार्ग । 'भवमग अनन्त है।'
विन० १५१.७ भवमोचन : संसार से मुक्त करने वाला। मा० १.२११ छं० १५ भवरोग : संसार रूपी रोग, जन्म-मरण चक्र की व्याधि । विन० ८१.५ भवबंध : (सं०) शिवजी के पूज्य (प्रणम्य, आराध्य) । विन० ५६.२ भवसरिता : संसार रूपी नदी । विन० १८५.५ भवसागर : संसार रूपी समुद्र; अपरिमेय आवागमन चक्र । मा० ४.२६.३ भवसिंधु : भवसागर । मा० १.२५ ४ भवसंभव : संसार से उत्पन्न । 'मिटहिं सकल भवसंभव खेदा ।' मा० ४.२३.५ भवसूल : (दे० सूल)। सांसारिक क्लेश । विन० १३६.१
For Private and Personal Use Only