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तुलसी शब्द-कोश
२.१००.६ (६) आता-ती है । 'नीद परइ नहिं राति । मा० ३.२२ (७) शक्य होता-ती है । 'ग्रंथि छूट किमि परइ न देखी ।' मा० ७.११७.७ (८) निमग्न होता है । होइ सुखी जो एहि सर परई ।' मा० १.३५.८ ( ६ ) डाला जाता है। परउँ : आ०उए० (सं० पतामि> प्रा० पडमि> अ० पडउँ) । (१) गिरता-ती हूं । 'मैं पा परउँ, कहइ जगदंबा ।' मा० १.८१.७ (२) गिर सकता-ती हूं । परउ कूप तुअ बचन लगि ।' मा० २.२१
/ परख, परखइ : (सं० परीक्षते > प्रा० परिक्खइ) आ०प्र० । परखता है, जाँचता है, परीक्षा करता है | 'पापि न परखइ भेदु ।' दो० ३५०
परखत: वकृ०पुं० । परखते, जाँचते । 'परखत प्रीति प्रतीति पयज पनु ।' गी०
१. ८०.३
परखि: पूकृ० (सं० परीक्ष्य > प्रा० परिक्खि > अ० परिक्खि ) । परीक्षा ले कर जाँच-परख कर । 'तुलसी परखि प्रतीति प्रीति गति.....।' कृ० ६० परखिअ : परखिए । परख में आता है 'प्रेम न परखिअ परुषपन ।' दो० २६८ परखिए, ऐ : आ०कवा०प्र० (सं० परीक्ष्यते > प्रा० परिक्खी अइ ) । परखा जाता है, जाँचने में आता है । 'बिरुचि परखिए सुजन जन, राखि परखिऐ मंद ।' दो० ३७४
परखी : भूकृ० स्त्री० । परख ली, जान ली । 'परखी पराई गति, आपनेहू कीय की । " विन० २६३.२
परखे : भूकृ०पु०ब० । परख लिए, जाँच-समझ लिए । 'परखे प्रपंची प्रेम ।' विन०
२६४.२
परख्यो : भूकृ०पु०कए० । परखा, जाँचा 'परख्यो न फेरि खर खोट । विन०
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१६१.८
परचंड : प्रचंड | विन० ५०.१
परचारि : सं० स्त्री० (सं० परिचार = परिचर्या) । सेवा, भक्ति । गी० ३.१७.५
1
परचारे पचारे | मा० ६.३५.१
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परछाहीं : परिछाहीं । कवि० १.१७
परज : क्रि०वि (सं० पयंक > प्रा० परिय ) । सब
ओर, सर्वथा । 'सो पुरइहि जगदीस परज पन राखिहि ।' जा०मं० ६८ (२) (अरबी - फर्ज ) कर्त्तव्य | परवरा : भूकृ०पुं० (सं० परिज्वलित > प्रा० परिजलिअ ) । जलभुन गया । 'सुनत बचन रावन परजरा।' मा० ६.२७.८
परत : वकृ०पु० । (१) गिरता - गिरते । 'धर परत कुधर समान ।' मा० ३.२०.१० (२) पड़ते ही । 'पावक परत निषिद्ध लाकरी होति अनल जग जानी ।' कृ० ४८ (३) डाले जाते । 'परत पांवड़े बषन अनूपा । मा० १.३२८.२
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