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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 779 बौड़ : सं०स्त्री०। (१) लता (२) लता की शाखा । 'बढ़त बौंड जनु लही सुसाखा।' मा० २.५.७ बोडि : पूक० । बौंड़ कर, शाखाएं फेंक-फला कर, फैल कर। 'नभ बिटप बौंड़ि मानों छपा छिटकि छाई ।' गी० १.१६.३ बोडी : भूक स्त्री० । (१) टहनियां फैलाकर छा गयी। राम कामतरु पाइ बेलि ज्यों बौंड़ी बनाइ।' गी० १.७२.३ (२) छाई हुई । 'बौंड़ी देखियत कलप बेलि फरी है।' गी० १.६२.४ बौद्ध : बुद्ध (सं०) । बुद्धावतार । विन० ५२.८ बौर : सं०० (सं० बकुल>प्रा० बहल) । सुगन्धित पुष्प, आम्रमञ्जरी। मा० १.२८८ बौरा : (१) बाउर । मूक । 'भे सब लोक सोक बस बोरा ।' मा० २.२७१.१ (२) पागल। 'बोरा, बोराइ : आ०प्रए० (सं० वातुलायते>प्रा० वाउलाइ) । वातव्याधि ग्रस्त होता है, पागल हो जाता है, मतवाला बन जाता है । 'जगु बोरइ राजपदु पाएँ ।' मा० २.२२८.८ बोराई : (१) बोराइ । पागल हो जाय । 'मैन के दसन, कुलिस के मोदक, कहत सुनत बोराई ।' कृ० ५१ (२) सं०स्त्री० (सं० वातुलता>प्रा० वाउलाया)। पागलपन । 'करत फिरत बौराई।' विन० ८१.१ पौराएँ : बोराने से, विक्षिप्त कर देने से । 'भल भूलिहु ठग के बौराएँ ।' मा० १.७९.७ गोरानी : भूकृ०स्त्री० । पगलायी, विक्षिप्त हुई । 'सती सरीर रहिहु बोरानी।' मा० १.१४१.४ बोरायहु : आo-भूक००+मब० । तुमने पागल बना दिया । 'मथत सिंधु रुद्रहि बौरायहु ।' मा० १.१३६.८ बौराह, हा : वि.पुं० (सं० वातुलाभ>प्रा. वाउलाह-वातुलसदृश)। पागल जैसा । 'बरु बौराह बसह असवारा।' मा० १.६५.८; ७.७०.८ चौरे : बौरा (रूपान्तर) । पागल । 'बोरे बरहि लागि तपु कीन्हा ।' मा० १.६७.२ व्यंग : बिग्य । व्यञ्जना (वक्रता) से आने वाला अर्थ (काव्यार्थ)। 'प्रेम प्रसंसा बिनय ब्यंग जुत सुनि बिधि की बर बानी।' विन० ५.५ व्यग्र : व्यग्र । आतुर, व्याकुल । मा० ३.२४ व्यजन : सं०० (सं० व्यजन) । पंखा । मा० १.३५०.४ व्यतिरेक : सं०० (सं० व्यतिरेक)। अभाव, विरह, अतिरिक्त होना (छोड़ कर) । 'व्यतिरेक तोहि को सहि सके ।' विन० १३६.६ (तुझे छोड़कर= तेरे सिवा)। For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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