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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 776 तुलसी शब्द-कोश बोरी : (१) बोरि। डुबो कर, सौंद कर । 'रचित तड़ित रंग बोरी।' गी० ७.७.४ (२) भूक स्त्री० । डुबायी हुई । 'बोले गिरा अमिों जनु बोरी।' मा० १.३३०.५ बोरे : भूकृपु । डुबोए, मग्न किये हुए । 'आपु कंज मकरंद सुधा ह्रद हृदय रहत नित बोरे ।' कृ० ४४ बोरौं : आ०उए । डुबा दू, डुबा सकता हूं। 'लंका गहि समुद्र महँ बोरौं ।' मा० ६.३४.२ बोर्यो : भूकृ.पु०कए । डुबाया गया। सरिता महँ बोर्यो हौं बारहि बार । विन० १८८.३ बोल : (१) सं०० (प्रा० वोल्ल=वचन+तरङ्ग)। उक्ति, कथन । 'मालवान रावरे के बावरे से बोल हैं।' कवि० ५.२१ (२) प्रतिज्ञा वाक्य । 'बलि बोल न विसारिए ।' हनु० २० (३) बोलइ । 'तबहुं न बोल चेरि बड़ि पापिनि ।' मा० २.१३.८ (४) बोलइ। बुलाता है। भोजन करत बोल जब राजा।' मा० १.२०३.६ (५) तरङ्ग+कथन । 'महिमा अपार काहू बोल को न वार पार ।' कवि० ७.१२६ 'बोल, बोलइ : आ०प्रए० (प्रा० वोल्लइ =सं० कथयति)। कहता-ती है । 'बटु करि कोटि कुतरक जथारुचि बोलइ।' पा०म० ५८ (२) बुलाता है। पुकारता है। बोलत : वकृ०पु । (१) बात करता-करते । 'बोलत तोहि न संभार ।' मा० १.२७१ (२) बुलाता-बुलाते । 'भयो रजायसु पाउ धारिए बोलत कृपानिधान हैं।' गी० ५.३५.२ बोलन : (१) बोल+संब० । बोलों, शब्दों। 'बलि जाउँ लला इन बोलन की।' कवि० १.५ (२) भक० अव्यय । बोलने, शब्द करने । 'अरुनचूड़ बर बोलन लागे।' मा० १.३५८.५ (३) बुलाने, पुकारने । 'कौसल्या जब बोलन जाई।' मा० १.२०३.७ बोलनि : सं०स्त्री० । बोलने की क्रिया । 'राम बिलोकनि बोलनि चलनी।' मा० ७.१६.४ बोलनिहारे : वि०पु । बोलने वाले । 'बोलनिहारे सों करै बलि बिनय की झाई।' विन० १४६.५ नोलब : भक०० । बोलना (बोलने में) । 'मैं बोलब बाउर ।' मा० २.२६३.५ बोलसि : आ०मए । तू बोलता है। 'बोलसि निदरि बिप्र के भोरें। मा० १.२८३.५ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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