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तुलसी शब्द-कोश
769 बृहद्बाहु : वि० (सं०) । विशाल भुजाओं वाला । विन० २८.१ बेंचि : बेचि । 'नाम तव बेंचि नरकप्रद उदर भरौं ।' विन० १४१.३ बेंचे : बेचने पर (से) । 'बेंचे खोटो दाम न मिल ।' विन० ७१.७ बेच्यो : भूक०० कए । बेच दिया । 'बेच्यो बिषयनि हाथ हियो है।' विन०
१७१.४ बेत : बेत । (१) एक प्रकार का झाड़ । लिए बेंत छरी सोधै बिभाग।' गी०
७.२२.५ (२) छड़ी (विशेषतः द्वारपाल की)। 'उग्रसेन के द्वार बेंत कर
धारी।' विन० १८.७ बेकाम : वि०+क्रि०वि० । बेकार, व्यर्थ । 'आइ बकहिं बेकामहिं ।' कृ० ५ बेग : वेग । गति की तीव्रता, शीघ्रता। मा० २.८२ बेगरन : भक० अव्यय । बिगड़ना, बिगड़ने । 'बनी बात बेगरन चहति ।' मा०
२.२१७ बेगहु : बेग+मब० । शीघ्रता करो। 'बेगहु भाइहु सजहु संजोऊ ।' मा० २.१६१.१ बेगारि : सं०स्त्री० (फा० बेगार)। (१) ऐसा काम जो सामन्त लोग अपनी प्रजा
से बिना पारिश्रमिक दिये लिया करते थे। (२) बेदिली से किया जाने वाला काम । 'नाहिं त भव बेगारि मह परिहै छूटत अति कठिनाई रे।' विन०
१८६.१ बेगारी : भूकृ०स्त्री० । बिगाड़ दी, बेकार कर दी। 'मिलेहि माझ बिधि बात
बेगारी।' मा० २.४७.१ बेगि, गो : पूकृ० । वेग करके, शीघ्रता करके (तत्काल, शीघ्र ही) । 'उठहु बेगि
सोइ करहु उपाई :' मा० २.५०.८, ६.१०६.२ बेगिअ : आ० भावा० । शीघ्रता कीजिए । 'बैगिअ नाथ न लाइअ बारा।' मा०
२.५.६ बेगु : बेग+कए । अनोखा वेग । तीव्रतर गति । 'खगराज को बेगु लजायो।' ___ कवि० ६.५४ बेचक : वि०पू० । बेचने वाला, विक्रेता । 'द्विज श्रुति बेचक ।' मा० ७.६८.२ बेचत : वक० (सं० व्यचत्>प्रा. वेच्चंत) । बेचता-बेचते । 'बेचत बेटा बेटकी ।'
कवि० ७.६६ बेचनिहारे : वि.पु०ब० । बेचने वाले। 'और बेसाहि के बेचनिहारे ।' कवि०
७.१२ बेचहि : आ०प्रब० (अ० वेचहि) । बेचते हैं । 'बेचहि बेद धरम दुहि लेहीं।'
मा० २.१६८.१
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