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तुलसी शब्द-कोश
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'बुझा, बुझाइ, ई : बुझइ । बुझ जाता है । 'तबहिं दीप बिग्यान बुझाई ।' मा
७.११८.१३ बुझाइ : पूकृ० । (१) समझा कर। 'पितहि बुझाइ कहहु बलि सोई ।' मा०
२.४३.५ (२) बुता कर, आग शान्त करके । 'पूंछ बुझाइ खोइ श्रम ।' मा०
बुझाई : (१) दे० /बुझा । (२) बुझाइ । समझा कर । 'तब मुनि सादर कहा
बुझाई ।' मा० १.२१०.६ (३) भूकृ०स्त्री० । समझाई । 'कहि कथा सुहाई
मातु बुझाई ।' मा० १.१६२ छं० बुझाउ : आ०-प्रार्थना-मए० (सं० बोधय>प्रा० बुज्झाव>अ० बुज्झा) ।
तू समझा दे । 'तेरे ही बुझाए बूझै अबुझ बुझाउ सो।' विन० १८२.५ बुझाए, ये : भूक००० (सं० बोधित>प्रा० बुज्झाविय) । (१) समझाये । 'बाल
बुझाए बिबिध बिधि ।' मा० १.६५ (२) समझाने पर । 'तेरे ही बुझाये बूझै ।'
विन० १८२.५ बुझानी : भूकृ॰ स्त्री० । बुझ गयी, बुत गयी, शान्त हो गयी। 'राग द्वेष की अगिनि
बुझानी।' वैरा०६० बुझायो : भूक ००कए ० । (१) (सं० बोधित:>प्रा० बुज्झाविओ)। समझाया।
'सुनु खल मैं तोहि बहुत बुझायो।' मा० ६.४.१ (२) (सं० व्युदिन्धितः>प्रा० वुज्झाविओ) । बुताया, शान्त किया। 'पावक काम, भोग घृत तें सठ, कैसे
परत बुझायो।' विन० १६६.४ 'बुझाय, बुझावइ : (१) आ०प्रए० (सं० व्युदिन्धयति>प्रा० वुझावइ) ।
बुताता है, शान्त करता है । 'तेहि बुझाव घन पदवी पाई ।' मा० ७.१०८.१०
(२) (सं० बोधयति>प्रा० बुज्झावइ) । समझाता है। बुझावत : वकृ०० । बुताता-ते, शान्त करता-करते। 'कोबिद दारुन श्यताप
बुझावत ।' विन० १८५.४ बुझावहिं : आ०प्रब० (सं० व्युदिन्धयन्ति>प्रा० वुज्झावंति>अ. वज्झावहिं) ।
बताते हैं । (१) ज्योति-शमन करते हैं। 'अंचल बात बुझावहिं दीपा ।' मा० ७.११८.८ (२) अग्नि या ताप शान्त करते हैं । 'बरषि नीर ए तबहिं
बुझावहिं ।' कृ० ५६ बुझावा : (१) भूकृ०० । समझाया। 'मय-तनयां कहि नीति बुझावा।' मा०
५.१०.७ (२) शान्त किया। (३) बुझावइ । समझाता है । 'सर निंदा करि ताहि बुझावा ।' मा० १.३६.४ (४) बुझावइ । शान्त करता है, बुता सकता
है । 'लोभ बात नहिं ताहि बुझावा ।' मा० ७.१२०.४ बुझाव : बझाव इ। बुता सकता है, ज्वाला शमन कर सकता है । 'न बुझावै सिंधु
सावनो।' कवि० ५.१८
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