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तुलसी शब्द-कोश
बिहाल, ला : बिहबल (सं० विह्वल>प्रा० विहल्ल) । मा० ५.२६.२' बिहाल, लू : (१) बिहाल+कए । व्यथित, विभ्रान्त । विन० ७४.४ (२) बिखरा
हुआ। 'राम बिरहँ सबु साजु बिहालू ।' मा० २.३२२.१ बिहित : विहित । मा० १.३१६.२ बिहीन, ना : वि० (सं० विहीन)। रहित, वियुक्त । 'कमल दीन बिहीन तमारि ।'
मा० २.८६; १.२१.४ बिहून, ना : बिहीन (प्रा० विहूण) । 'मलयाचल हैं संत जन तुलसी दोष विहून ।'
वैरा० १८ बिहूने : बिहूना+ब० । रहित । 'बिहूने गुन पथिक पिआसे जात पथ के ।'
कवि० २४ बोके : बिके । भूक००० (सं० विक्रीत>प्रा० विक्किय) । बिक गये । 'मन
मोल बिन बीके हैं।' गी० २.३०.४ ।। बीच, चा : सं०+क्रि०वि०० (अ. विच्च =सं० वर्म)। मार्ग ।
(१) मार्गान्तराल । 'बीच बास करि जमुनहिं आए।' मा० २.२२०.८ (२) मध्य, अन्तराल । 'मची सकल बीथिन्ह बिच-बीचा।' मा० १.१६४.८ (३) समयान्तराल । 'कछुक बात बिधि बीच बिगारेउ ।' मा० २.१६०.२ (४) अन्तर । 'दुखप्रद उभय बीच कछु बरना।' मा० १.५.३ (५) अवसर,
समयविशेष (मौका)। बीचि, ची : वीचि । तरंग । मा० १.१८ बोचु : बीच+कए। (१) अवसर । 'बीचु पाइ निज बात सँवारी ।' मा० २.१८.१
(२) अन्तराल (दरार) । 'महि न बीचु बिधि मीच न देई ।' मा० २.२५२.६ (३) अन्तर, भेदभाव, फूट, व्याघात । 'नीच बीच जननी मिस पारा।' मा०
२.२६१.१ बीछो : वृश्चिक (प्रा० विच्छिअ) । मा० २.१८० बीछे : भूक००वि०ब० (सं० विच्छित-विच्छ दीप्तौ>प्रा० विच्छिय) ।
चमकीले, भड़कीले, रंग-बिरंगे, विचित्र । 'आछे-आछे बीछे-बीछे बिछौना बिछाइ
के।' गी० १.८४.३ बीज : सं०० (सं.)। (१) कारण । 'बीज सकल ब्रत धरम नेम के।' मा०
१.३२.४ (२) दाना (जो अङ कुरित होता है) । 'ऊसर बीज बएँ फल जथा।'
मा० ५.५८.४ बीजमंत्र : सं०० (सं०) । एकाक्षर मन्त्र जिनमें रहस्य रहता है, जैसे-र+अ+
म=राम। तीनों अक्षर क्रमशः अग्नि तत्त्व, सूर्य तत्त्व और सोम तत्त्व के बोधक बीजमन्त्र है । इस प्रकार 'राम' वह बीजमन्त्र-समूह है जिसके जप में आवरण तथा मल के दाह, अज्ञानान्धकार-नाश और विषय-विक्षेप के सन्तापों के शमन
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