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________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir तुलसी शब्द-कोश 735 बिनवति : वकृ०स्त्री० । निवेदन करती । सभय हृदय बिनवति जेहि तेही ।' मा० १.२५७.४ बिनहिं : आ०प्रब० (सं० विज्ञापयन्ति>प्रा० विन्नवंति>. विन्नवहिं)। अनुरोध करते हैं। (नर-नारी) बिनवहिं अंजुलि अंचल जोरी।' मा० २.२७३.५ बिनवौं : बिनवउँ । कवि० ७.१४७ बिनस, बिनसइ : आ०ए० (सं० विनश्यति >प्रा० विणसइ) । नष्ट होता है, ___ अदृश्य या विकृत होता है । 'उपजइ बिनस इ ग्यान जिमि ।' मा० ४.१५ ख बिनसाइ : बिनसइ । विकृत होता है । 'छीरसिंधु बिनसाइ ।' मा० २.२३१ बिनहि : विना ही। मा० १.५९ बिना : अव्यय (सं० विना) । मा० १.१०.४ बिनाए : भूकृ००ब० (सं० विचायित>प्रा० विइणाविय) । चुनाये, चुगाए । 'बिकल बिनाए नाक चना हैं ।' गी० ७.१३.७ बिनायक : सं०+वि०पु० (सं० विनायक)। स्वामी या नेता, गणों के मखिया = गणेश जी। विन ० १ बिनायक : बिनायक+कए । गणेश । रा०प्र० १.१.१ बिनास : सं०० (सं० विनाश) । ध्वंस, संहार । रा०प्र० १.७.४ बिनासन : वि०पु० । विनाशकारी। मा० ७.१४.३ बिनासि : पूकृ० (सं० विनाश्य>प्रा० विणासिय>अ० विणासि) । नष्ट करके । 'पर संपदा बिनासि नसाहीं।' मा० ७.१२१.१६ बिनास्यो : भूकृ००कए ० । नष्ट कर दिया। 'कुबासना बिनास्यो ग्यानु ।' कवि० ७.८४ बिनिदक : वि० (सं० विनिन्दक)। निन्दा या तिरस्कार करने वाला। 'बिधु कर निकर बिनिंदक हासा।' मा० १.१४७.२ बिनिदनिहारु : वि००कए । विनिन्दक, तिरस्कार करने वाला। 'दुकूल दामिनि दुति बिनिदनिहारु।' गी० ७.८.४ बिनीत, ता : वि० (सं० विनीत) । विनयशील, शिष्ट । मा० १.१८८; ३.५.१ बिनु : बिना (अ० विण) । 'नृपु कि जिइहि बिनु राम ।' मा० २.४६ बिनोद : सं०पु० (सं० विनोद)। (१) इच्छा, वासना । 'निर्गुन बिगत बिनोद ।' मा० १.१६८ (२) आमोद, हास-विलास । 'कौतुक बिनोद प्रमोद प्रेम ।' मा० १.३२७ छं० ३ (३) मनोरञ्जन । 'एहि बिधि करत विनोद बहु ।' मा० ६.१६ क (४) क्रीड़ा, कौतुक । 'कपिन्ह सन करत अनेक बिनोद ।' मा० ६.११७ क For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
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