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तुलसी शब्द-कोश
'बिदूषक : (१) सं.पुं० (सं० विदूषक) । स्वांग भर कर हास-परिहास प्रस्तुत
करने वाला । भांड़ । हास्याभिनय करने वाला । 'करहिं बिदूषक कौतुक नाना।' मा० १.३०२.८ (२) वि० । दोष निकालने वाला, निन्दक, दूषित करने
वाला । 'बेद बिदूषक बिस्व बिरोधी ।' मा० २.१६८.२ 'बिदूषहिं : आ०प्रब० । दोष लगाते हैं । ‘इन्हहि न संत बिदूषहिं काऊ।' मा०
१.२७६.३ बिदूषहि : आ० मए । तू दोष लगा, तू दोषारोपण कर । 'जनि तेहि लागि बिदूषहि
केही।' विन० १२६.४ बिदूषित : वि० (सं० विदूषित) । विशेष दोषयुक्त । पा०म० ४ बिदेस : सं०पु० (सं० विदेश)। स्वदेश से बाहर देश, परदेश । मा० २.१४.५ विदेहँ : विदेह ने, जनक (सीरध्वज) ने । 'दीन्ह बिदेहँ बहोरि ।' मा० १.३३३ बिदेह : (१) सं०० (सं० विदेह) । जनक वंश के पूर्वज 'निमि' को शापवश देह
त्याग करना पड़ा था अतः उनके वंशजों को 'विदेह' कहा गया । (२) मिथिला जनपद (जो जनक राजाओं का देश था)। 'कहहु बिदेह-भूप कुसलाता।' मा० २.२७०.६ (३) विदेहराज=सीता जी के पिता=सीरध्वज । मा० १.२६६ (४) स्थूल-सूक्ष्म-कारण शरीरों के अध्यास से मुक्त = जीवन्मुक्त । 'भयो बिदेह
बिभीषन ।' गी० ५.३६.२ बिदेहता : (दे० बिदेह) देहाध्यास मुक्त दशा, आत्मलीन यति की जीवन्मुक्त
___ अवस्था । 'कब ब्रज तज्यो, ज्ञान कब उपज्यो, कब बिदेहता लही है।' कृ० ४२ बिदेहपुर : विदेहवंश की राजधानी जनकपुर । मा० १.३३७ बिदेहु, हू : बिदेह+कए । (१) जनकराज (२) देहाध्यासरहित मुक्त पुरुष ।
__ 'भयउ बिदेहु बिदेहु बिदेषी।' मा० १.२१५.८ । बिद्दरत : बिदारत । 'बिकट कटकु बिद्दरत बीरु ।' कवि० ६.४७ बिहरनि : बिदरनि । विदारण करने वाली । 'सृग बिद्दरनि जनु बज्र टाँकी ।'
कवि० ६.४४ बिद्दरित : भूक० (सं० विदारित) । फाड़ा (हुआ) । विन ० ५२.४ बिद्यमान : (१) वि० (सं० विद्यमान) । उपस्थित, सामने वर्तमान । 'बिद्यमान रन
पाइ रिपु कायर कहिं प्रतापु ।' मा० १.२७४ (२) वर्तमान काल । 'बात
कहीं मैं विद्यमान की ।' गी० ५.११.४ । बिद्यइ : विद्या (ने) भी । 'बिद्यहु लही बड़ाई ।' गी० १.५५.६ ।। बिद्या : विद्या । (१) शिक्षा, शास्त्रादि-ज्ञान । 'बिद्यानिधि कहुं विद्या दीन्ही ।'
मा० १.२०६.७ (२) परमार्थ-ज्ञान । 'प्रभु प्रेरित ब्यापइ तेहि बिद्या।' मा० ७.७६.२
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