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तुलसी शब्द-कोश /पढ़ पढ़इ : (सं० पठति >प्रा. पढइ) आ.प्रए । पढ़ता है, शिक्षा लेता है । 'सो
हरि पढ़ यह संसय भारी ।' मा० १.२०४.५ पढ़त : वकृ०० (सं० पठत् >प्रा० पढंत)। पढ़ता-ते । पाठ करते । 'चले पढ़त
गावत गुन गाथा ।' मा० १.२३१.७ पढ़न : भक० अव्यय । पढ़ने, शिक्षा लेने । गुर गृह. गए पढ़न रघुराई ।' मा०
१.२०४.४ पढ़हिं : आ० प्रब० (सं० पठन्ति>प्रा० पढंति>अ० पढ़ाह) । पढ़ते हैं, पाठ करते
हैं । 'बेद पढ़हिं जनु बटु समुदाई ।' मा० ४.१५.१ पढ़ाई : पूक० (सं० पाठयित्वा>प्रा० पढाविअ>म० पढावि) । पढ़ा कर । 'हारेउ
पिता पढ़ाइ पढ़ाई ।' मा० ७.११०.८ पढ़ाइहौं : आ०भ० उए ० । पढ़ाऊँगा, शिक्षा दिलाऊँगा । 'केवट की जाति कछु बेद
न पढ़ाइहौं ।' कवि० २.८ पढ़ाई : (१) पढाइ । पढ़ा कर । मा० ७.११०.८ (२) भूक०स्त्री० । शिक्षित की।
'कोटि कुटिल मनि गुरु पढ़ाई ।' मा० २.२७.६ पढ़ाए : भूकृ०पू०ब० । शिक्षित किए। 'कनक पिंजरन्हि राखि पढ़ाए। मा०
१.३३८.१ पढ़ायो : भूकृ.पु०कए । शिक्षित किया। 'सो कहै जगु जान की नाथ पढ़ायो।'
कवि० ७.६० /पढ़ाव पढ़ावइ : ( /पढ़+प्रेरणा-सं० पाठयति>प्रा. पढावइ) आ० प्रए ।
पढ़ता है, शिक्षित करता है । 'बिप्र पढ़ाव पुत्र की नाई।' मा० ७.१०५.६ पढ़ावहिं : आ०प्रब० (सं० पाठयन्ति >प्रा० पढावेन्ति>अ.पढावहिं) । पढ़ाते हैं ।
'सुक सारिका पढ़ावहिं बालक ।' मा० ७.२८.७ पढ़ावा : भूक: पु० । पढ़ाया, शिक्षित किया । 'प्रौढ़ भएँ मोहि पिता पढ़ावा ।' मा
७.११०.५ पढ़ाव : पढ़ावहिं । गी० ३.६.३ पढ़ाही : पढ़हिं । 'बेद जुबा जुरि बिप्र पढ़ाहीं।' कवि० १.१७ पढ़ि : पूकृ० । पढ़ कर । 'गाडि अवधि पढ़ि कठिन कुमंत्र ।' मा० २.२१२.४ पढ़िबे : भकृ.पु० । पढ़ने । 'पढ़िबे को कहा फल ।' कवि० ७.१०४ पढ़िबो : भकृ.पु०कए० (सं० पठितव्यम् >प्रा० पढिअवं>अ० पढिव्वउ) । पढ़ना। __ 'पढ़िबो पर्यो न छठी।' विन ० १५५.१२ पढ़िय : आ०कवा०प्रए । पढ़ा जाता है, पढ़ा जाय । 'पढ़िय न समुझिय जिमि खग
कीर ।' विन० १९७.२ ।। पढ़ें : पढ़ने से । 'श्रम फल पढ़ें किएँ अरु पाएँ ।' मा० ३.२१.६
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