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तुलसी शब्द-कोश
बहरी : सं० । बाज जाति का बड़ा शिकारी पक्षी (जो चील के आकार का
होता है) । 'तीतर तोम तमीचर सेन समीर को सूनु बड़ो बहरी है।' कवि०
बहसि : वहसि । तू बहता-ती है । 'बिपुल बिमल बहसि बारि।' विन० १७.२ बहहि, हीं : आ० प्रब० (सं० प्रा० वहन्ति>अ० वहहिं)। बहते-ती हैं । (१) धारा
में विवश गति लेते हैं । 'बह भट बहहिं चढ़े खग जाहीं।' मा० ६.८८.६ (२) ढोते हैं । 'भार बहहिं खर बद।' मा० ६.२६ (३) धारा में ले चलते ती
हैं । 'सरिता सब पुनीत जलु बहहीं।' मा० १.६६.१ बहहू : आ० मब० (सं० वहथ>प्रा. वहह>अ० वहहु) । ढोते हो, धारण करते
हो । 'मुधा मान ममता मद बहहू ।' मा० ६.३७.५ बहाइ, ई : (१) प्रकृ० । बहाकर, प्रवाहित कर । 'बानरु बहाइ मारो महावारि
बोरि के ।' कवि० ५.१६ (२) नष्ट करके । 'कुल समेत रिपु मूल बहाई । चौथे
दिवस मिलब मैं आई।' मा० १.१७१.५ ।। बहाओ : आ०मब० (सं० वाहयत>प्रा० वहावह>अ० वहावहु) । प्रवाहित करो,
दूर फेंको, हटावो। 'तुलसिदास सो भजन बहाओ जाहि दूसरो भाव ।'
कृ०३३ बहायो : भूकृपु०कए । धो फेंका, नष्ट कर डाला । 'रावन सकुल समूह बहायो।'
गी० ६.२१.३ बहाव : बहावइ । आ०ए० (सं० वायति>प्रा. वहावइ) । दूर करता है।
'मोह अंध रबि बचन बहावं ।' वैरा० २२ बहावौं : आ० उए० (सं० वाहयामि>प्रा. वहावमि>अ. वहावउँ)। धो डालं,
प्रवाहित कर सकता हूं, मिटा डालता हूं। 'सबहि को पापु बहावौं ।' गी०
बहि : पूर्व ० । बह कर, धारामग्न होकर । 'कपट प्रीति बहि जाउ।' गी० ५.४५.४ बहिनि, नी : संस्त्री०। (सं० भगिनी>प्रा० भइणी= बहिणी)। बहन । मा०
३.१७.३ बहिबे : भकृ०० । धारा वाहिक गति लेने, निर्वाह करने। 'गाड़े भली उखारे __ अनुचित बनि आए बहिबे ही।' कृ० ४० बहिबो : भकृ००कए। बहना। 'देखिबो बारि बिलोचन बहिबो।' गी०
५.१४.३ बही : भूकृ०स्त्री०। (१) बह चली। 'जुगल नयन जलधार बही।' मा०
१.२११ ई० (२) बह गयी, धुल गयी। 'प्रभु पद प्रीति सरित सो बहो।' मा० ५.४६.६ (३) चली । 'बड़ी बयारि बही है।' गी० ५.२४.२
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