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तुलसी शब्द-कोश
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बलित : भूकृ०वि० (सं० वलित) । वक्र, लहरदार । 'मंजु बलित बर बेलि
बिताना।' मा० २.१३७.६ बलिदान : सं०० (सं०) । उपहार विशेष जिसे देवबलि, पितृबलि और भूतबलि
(पशु-पक्षियों को देय अन्न आदि) भेदों में विभक्त किया है। गी० १.५.४ बलिपसु : यज्ञ में देवोपहार हेतु मारा जाने वाला पशु । मा० २.२२.२ बलिभागा : (सं० बलिभाग) प्रत्येक देवादि के उपयुक्त नैवेद्य का पृथक्-पृथक् अंश
(दे० बलिदान) । मा० २.८.५ बलिहारी : (१) (दे० बलि) न्योछावर । 'रति सतकोटि तासु बलिहारी ।' मा०
३.२२.६ (२) मैं न्योछावर हो जाऊँ, धन्य हो (मुहावरा) । 'जैसे हो तैसे
सुखदायक ब्रजनायक बलिहारी।' कृ०६ बली : बलवान (सं० बलिन्) । मा० ६.७८.८ बलीमुख : सं०पु० (सं० वलीमुख) । वानर (सिकुड़न युक्त मुख वाला) । मा०
६.४६.७ बलु : बल+कए । 'हरि माया बलु जानि जियें ।' मा० १.५१ बलया : सं०स्त्री० (अरबी-बलयत = बलैया) । ब्याधि, दुःख, दुश्चिन्ता (अपने
ऊपर लेने का मुहावरा है)। 'राय दसरस्थ की बलैया लीजै आलि री।'
कवि० २.१२ बल्लम : सं०+वि.पु. (सं० वल्लभ)। (१) प्रिय । 'समर भूमि भए बल्लभ
प्राना ।' मा० ६.४२.८ (२) पति । 'बल्लभ गिरिजा को।' विन० १.२.११
(३) श्रेष्ठ, महान् । बल्लमहि : वल्लभा को, प्रिय पत्नी को। 'को बिबेकनिधि बल्लभहि तुम्हहि सका
उपदेसि ।' मा० २.२८३ बल्लभा : बल्लभ+स्त्री० । प्रिया, पत्नी । गी० ३.१०.२ बल्लभी : बल्लभा । कृ० २२ बल्लव : सं०० (सं०) । अहीर । बल्लवी : बल्लव+स्त्री० । अहीरनी । बल्ली : सं०स्त्री० (सं० वल्ली) । लता । दे० भुजबल्ली । गी० २.४६.३ /बव बवइ : आ०प्रए० (सं० वपति>प्रा० ववइ)। बोता है। 'बवै सो लुन
निदान ।' वैरा०५ बहिं : आ०प्रब० (सं० वपन्ति>प्रा. ववंति>अ० वहि) । बोते हैं । दो०
४८७ बवा : भक०० (सं० उप्त>प्रा० वविध)। बोया। 'बवा सो लनि ।' मा०
२.१६.५
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