SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 145
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ Shri Mahavir Jain Aradhana Kendra www.kobatirth.org Acharya Shri Kailassagarsuri Gyanmandir 690 तुलसी शब्द-कोश बरषत : बरषत । कवि० ६.४७ बरस : बरिस, बरष । 'दस चारि बरस के दुख ।' गी० ६.२२.४ 'बरस बरसइ : बरषइ । 'ऊसर बरस मेह ।' दो० २६८ बरसत : बरसत (सं० वर्षत्>प्रा. वरिसंत) । दो० ४०२ बरसति : वकृ०स्त्री० । बरसती, वर्षा करती। 'सुरमंडली सुमन चय बरसति । गी० ७.१७.१२ बरसन : बरषन । मा० ३.१६ क (पाठान्तर)। बरहि : (१) बर+हि । वर के लिए। 'बोरे बरहि लागि तपु कीन्हा ।' मा० १.६७.२ (२) सं०० (सं० वहिन >प्रा० बरिहि) । मयूर । 'जन बर बरहि नचाव ।' मा० १.३१६ बरह्यो : भूकृ००कए । ('बरहा' उस नाली को कहते हैं जिसमें से पानी ले जाकर क्यारी तक पहुंचाया जाता है। उससे सींचने की क्रिया को 'बरहना' कहते हैं ।) बरहे से सींचा । 'सो थाक्यो बरह्यो एकहिं तक देखत इनकी सहज सिंचाई ।' कृ० ५६ बराइ, ई : पूकृ० (सं० वारयित्वा>प्रा० वराविअ>अ० वरावि) । (१) बचाकर, निरस्त करके । 'हम सब भाँति करब सेवकाई । करि केहरि अहि बाघ बराई।' मा० २.१३६.५ (२) छांट कर, चुनकर । 'फल खात बराइ बराइ।' रा०प्र० ५.३.७ (३) जलाकर । बराएँ : क्रि०वि० । बचाकर, बचाते हुए। 'सिय राम पद अंक बराएँ।' मा० १.१२३.६ बराक : वि.पु. (सं० वराक) । बेचारा, तुच्छ। 'को बराक मनुजाद ।' गी० ५.२२.५ बराकी : वि०स्त्री० (सं० वराकी)। तुच्छ, दीन, बेचारी। ‘महाबीर बांकुरे; बराकी बाँह पीर ।' हनु० २३ बराट : सं०पु० (सं० वराट) । कौड़ी। 'हौं लालची बराट को।' कवि० ७.६६ बरात : बराता । मा० १.६२.८ बरातहि : बरात को । 'लै अगवान बरातहि आए ।' मा० १.६६.१ बराता : सं०स्त्री० (सं० वरयात्रा>प्रा० वरयत्ता=वरत्ता) । मा० १.६२७ बरातिन्ह : बराती+संब० । बरातियों (ने) । 'रथ गज बाजि बरातिन्ह साजे ।' मा० १.३३६.५ बराती : सं०+वि.पु. (सं० वरयात्रिन्>प्रा० वरयत्ती) । बरात के सदस्य गण। मा० १.४०.७ For Private and Personal Use Only
SR No.020840
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 02
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages612
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size13 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy