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तुलसी शब्द-कोश योगी बना लिया। इससे कृष्ण को कुब्जा-रति रूपी एरण्ड की छाया में विश्राम
जैसा सुख मिला।) बघारिबे : भक०० (सं० व्याघारयितव्य>प्रा. वाघारिअव्वय)। (१) बघारना
= छौंक लगाना ! (२) दीप्त करना । 'जुगुति धूम बघारिबे की समुझिहैं न गवारि ।' कृ० ५३ (धूम बघारना=बातों का बवंडर बनाकर युक्ति रूपी छौंक
लगाते हुए जानकारी का प्रकाश देना ।) बघूरें : बघूरे में, बवंडर में । 'चढ़े बघूरे चंग ज्यों।' दो० ५१३ ('वात-घूर्ण' से
'बघूरा' की व्युत्पत्ति है जो वात्या चक्र या चक्रवात का अर्थ देता है।) बच : सं०पू० (सं० वचस्) । वचन, उक्ति । मा० ७.२२.८ . बचउँ : आ० उए० (सं० विचामि>प्रा० वच्चामि>अ० वच्चउँ)। बहाने से
टालता हूं, उपेक्षा करता हूं। 'बिप्र बिचारि बचउँ नप द्रोही ।' मा० १.२७६.६ बचन : सं०० (सं० वचन)। उक्ति, कथन । मा० १.४.११ बचनन्हि : बचन+संब० । वचनों । गी० १.२२.६ बचनहि : वचन के । 'तजे रामु जेहिं बचनहि लागी।' मा० २.१७४.४ बचना : बचन । मा० १.७७.५ बचनामृत : वचन रूपी अमत, अमृत-तुल्य वचन, अमरत्व का संदेश देने वाली
उक्ति । मा० ७.८८.२ बचनु : बचन+कए । 'प्रभु बिधि बचनु कीन्ह चह साचा ।' मा० १.४६.१ बचा : सं०० (फा० बच्च:-सं० अपत्य>प्रा. अवच्च) । बालक, पुत्र । 'जग
में बलसालि है बालि-बचा।' कवि० ६.१५ बचाइ : पू० (सं० वाचयित्वा) । पढ़वा कर । 'यह पाती-नाथ बचाइ जुड़ावहु
छाती।' मा० ५.५६.६ बचावन : भक० अव्यय (सं० वाचयितुम्)। पढ़वाने । 'सचिव बोलि सठ लाग
बचावन ।' मा० ५.५६.१० बचावा : भूक०० (सं० व्याचित>प्रा० वच्चाविअ)। बचाया=रक्षित किया।
'करि छल सुअर सरीर बचावा।' मा० १.१५७.३ बचे : भक०० (ब) (सं० व्यचित) । शेष रहे, रक्षित रह सके, छोड़े गये।
नप बचे न काल बली ते ।' विन० १९८.२ ।। बचें : आ०प्रब० (सं० विचन्ति>प्रा० वच्चंति>अ० वच्चहिं)। बच जाते हैं
(रक्षित रह जाते हैं), अपने को बचा लेते हैं । 'भरदर बरसत कोस सत बचें
जे बंद बराइ ।' दो० ४०२ बच्छ : सं०० (सं० वत्स>प्रा० वच्छ)। (१) गाय का बछड़ा । 'बाल बच्छ जिमि
धेनु लवाई।' मा० १.३३७.८ (२) दुलारा बालक । 'बहुरि बच्छ कहि लालु कहि।' मा० २.६८ .
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