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तुलसी शब्द-कोश
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नेवाज : निवाजु । 'गईबहोर गरीब नेवाजू ।' मा० १.१३.७ नेवाजे : निवाजे । शरण में लिये । 'नाम गरीब अनेक नेवाजे ।' मा० १.२५.२ नेवाजो : निवाजो। 'काकी सेवा रीझि के नेवाजो रघुनाथ जू ।' कवि० ७.१६ नेवारई : निवारइ । 'परसत पानि पतिहि नेवारई।' मा० २.२५ छं. नेवारिहै : आ०भ०प्रए० । दूर करेगा। बिप्रन के भय को निवारिहै।' कवि०
७.१४२ नेवारे : निवारे । रोके । 'सयनहिं रघुपति लखनु नेवारो।' मा० १.२५४.४ नेवारेउ : निवार्यो । रोका, हटाया। 'सोक नेवारेउ सबहि कर ।' मा० २.१५६ नेवासी : निवासी । मा० २.२७०.२ नेह : सनेह (प्रा०) । प्रेम । मा० २.२६०.३ नेहरुआ : (दे० नाहरू) सं०पु० (सं० स्नायुरुजा>प्रा० न्हारुआ) ! एक प्रकार
का नसों में होने वाला रोग जिसमें रुधिर बहता है और नस बढ़ती जाती है ।
मा० ७.१२१.३५ नेहा : नेह । मा० ४.७.६ नेही : वि०पु० (सं० स्नेहिन्>प्रा० नेही)। प्रेमी, स्निग्ध । 'जोगवत नेही नेह ___मन ।' दो० ३०७ नहु, हू : नेह+कए । अनन्य प्रेम । 'जौं मोपर निज नेहु।' मा० १.७६ नैया : नाईं। सदृश । 'कूदत कपि कुरंग की नैया।' कृ० १६ ने : नइ । नई, नवीन । 'नित नै होइ राम पद प्रीती।' मा० १.७६.३ नैन, ना : नयन । मा० १.२२८ नैनन, नि : नयनन्हि । नेत्रों (से, ने) । 'जब नैनन प्रीति ठई ठग स्याय सों।' ___ कवि० ७.१३३ ननी : नयनी । 'जहँ बिलोक मृग सावक नैनी।' मा० १.२३२.२ नबेद : नबेद । मा० १.३५०.३ नबेद्य : सं०० (सं० नैवेद्य) । देवार्पित भोज्य पदार्थ । 'करि पूजा नैबेद्य चढ़ावा।'
मा० १.२०१३ नैमिष : सं.पु. (सं०)। तीर्थ विशेष जो उत्तर प्रदेश के सीतापुर जिले में है। ____ मा० १.१४३.२ नहर : सं०० (सं० मातृघर>प्रा० माइहर) । मैका, स्त्री के माता-पिता का
घर । मा० २.२१.१ नहीं : आ० भ० उए । झुकाऊँगा । 'सीस ईस ही नहौं ।' विन० १०४.३ नो : नः । हमारा-री-रे । हमको । 'त्रातु सदा नो भव खग बाजः ।' मा० ३.११.६ नोइ : सं०स्त्री० । नोवन, दुहते समय गाय की पिछली टाँगें बांधने की रस्सी।
मा० ७.११७.१