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तुलसी शब्द-कोश
निरुपाधि न्यारिये ।' हनु० २१ (३) निर्विघ्न । 'राम नाम जपु तुलसी नित
निरुपाधि ।' बर० ४८ निरूपउँ : आ० उए । निरूपण करता हूं, व्याख्यापूर्वक स्वरूप का प्रतिपादन करता
हूँ, विवेचन करता हूं। 'सगुन निरूपउँ करि हठ भूरी।' मा० ७.१११.१३ निरूपन : सं०पु० (सं० निरूपण) । स्वरूप-विवेचन, प्रतिपादन, व्याख्यात्मक
विवरण । 'ब्रह्म-निरूपन ।' मा० १.४४ 'नाम निरूपन नाम जतन तें।' मा०
१.२३.८ निरूपम : निरुपम । गी० १.६.२६ निरूपयहि : आ०प्रब० । स्वरूप विवेचन करते हैं । 'कहि नित नेति निरूपहिं बेदा।'
मा० २.६३.८ निरूपा : (१) निरूपइ । निरूपित करता है । 'नेति नेति जेहि बेद निरूपा ।' मा०
१.१४४.५ (२) भूकृ.पु । निरूपित किया। व्याख्या द्वारा स्पष्ट किया।
'खंडि सगुन मत अगुन निरूपा ।' मा० ७.१११.२ निरोध : सं०० (सं०) । नियमन, निग्रह, नियन्त्रित करना, वृत्तियों का शमन । ___ 'मन को निरोध ।' दो० २७४ निर्गता : भूकृ॰स्त्री० (सं०) । निकली हुई। 'नख निर्गता........ सुरसरी ।' मा०
७.१३ छं० ४ निर्गमहि : आ०प्रब० । निकलते हैं। 'एक प्रबिसहिं एक निर्गमहिं ।' मा० २.२३ निर्गुन, ण : वि० (सं० निर्गुण)। गुणहीन । (१) सभी गुणों से हीन । 'निर्गन
निलज कुबेष कपाली।' मा० १.७६.६ (२) माया गुणों से मुक्त, त्रिगुणातीत । 'निर्गुन ब्रह्म सगुन बपुधारी।' मा० १.११०.४ (यहां निर्गुण से 'निराकार' का तात्पर्य भी है-मायागुणों को स्वेच्छा से ग्रहण कर ब्रह्म सगुण-साकार बनता है, क्योंकि उसमें सत्य-संकल्पता का गुण विद्यमान है अत: संकल्पमात्र
से वह सगुण बनता है। निगुनमत : वेदान्त-मनीषियों का वह सम्प्रदाय जो ब्रह्म में किसी प्रकार के गुण
की सत्ता मान्य नहीं करता जबकि वैष्णव मत में ब्रह्म का निर्गुणत्व इतना ही है कि वह माया-गुणों से परे है-अन्यथा वह सर्वज्ञत्व, सर्वकर्तृत्व, सत्यकामत्व, सत्यसंकल्पत्व, अजरामरत्व, क्षुधपिपासाहीनता आदि कल्याण गुणों से सम्पन्न है तथा स्वेच्छा से माया गुणों को ग्रहण कर अवतीर्ण होता एवम् आकार ग्रहण करता है । 'तब मैं निर्गुनमत करि दूरी । सगुन निरूपउँ करि हठ भूरी।' मा०
७.१११.१३ निर्भर : सं०पू० (सं०) । झरना, प्रपात । मा० २.३०८.३ निर्दम : वि० (सं०) । दम्भहीन, निश्छल । मा० ७.२१.७ निर्दय : वि० (सं०) । दयाहीन, क्रूर । मा० ७.३६.५