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तुलसी शब्द-कोश
नहान : भकृ. अव्यय । स्नान करने। 'प्रात नहान लाग सबु कोऊ ।' मा०
२.२७३.३ नहाना : नहान । 'पाइ रजायसु चले नहाना । मा० २.२७८.८ नहानी : भूकृ० स्त्री०ब० । स्नान-निवृत्त हुईं। 'मातु नहानौं।' मा० २.१६७ नहाने : भूकृ०० ब० । स्नान निवृत्त हुए। 'सबिधि सितासित नीर नहाने ।' मा०
२.२०४.४ नहारू : नाहरू । 'मारसि गाय नहारू लागी।' मा० २.३६.८ नहावा : भूकृ०० । स्नान किया। सफल सौच करि राम नहावा ।' मा० २.६४.३ नहाही : आ० प्रब० (सं० स्नान्ति>प्रा० न्हंति >अ० न्हाहिं)। स्नान करते हैं ।
'एहि प्रकार भरि माघ नहाहीं।' मा० १.४५.१ नहाहू : न्हाहु । 'तात जाउँ बलि बेगि नहाहू ।' मा० २.५३.१ नहि, हीं : निषेधार्थक अव्यय (सं० नहि) । नहीं । मा० १.३.२ नहि : (१) नहिं (सं०) । 'जात नहि कछु कही।' गी० ७.६.१ (२) पूकृ० (सं० नवा >प्रा० नहिअ>अ० नहि) । नह कर, हल आदि में जोत कर । 'न तु
और सबै बिष बीज बए, हर हाटक कामदुहा नहि के ।' कवि० ७.३३ नहुष : सं०० (सं०) । एक पुराण प्रसिद्ध राजा जो कुछ समय के लिए इन्द्र पद
पर रहा और इन्द्राणी को पाने की इच्छा से ब्राह्मणों को जोत कर पालकी पर
चढ़ा और शाप.भागी बना । मा० २.६१ नहे : भूकृ००ब ० (मं० नद्ध>प्रा० नहिय) । जोते, जुए आदि में बांधे हुए।
‘रहंट नयन नित रहत नहे री।' गी० ५४६.२ नह्यो : भूकृ००कए । नहाया, स्नान किया। 'जूठनि को लालची, चहौं न दूध
नह्यो हौं।' विन० २६०.३ नांक : नाक । स्वर्ग । 'नवे नाथ नाँक को ।' हनु० १२ नाँघी : नाघी । गी० ३.७.२ नाय : नाम । 'ललित लागत नाय ।' गी० ६.१४.४ ना : न (स०) । 'उदित सदा अथइहि कबहू ना।' मा० २.२०६.२ नाइ : पूकृ० । नवा कर, झुका कर । 'कहिहउँ नाइ राम पद माथा ।' मा० १.१३.६ नाइअ : आ०कवा०प्रए० । झुकाइए, नत किया जाय। 'ताहि बयरु तजि नाइअ
माथा।' मा० ५.३६.५ नाइन्हि : आ०- भूकृ०+प्रब० । उन्होंने झुकाया। सिव सुमिरे मुनि सात आइ
सिर नाइन्हि ।' पा०म० ७५ नाइहि : आ०भ०ए०। झुकाएगा। 'कालउ तुअ पद नाइहि सीसा ।' मा०
१.१६५.२