________________
506
तुलसी शब्द-कोश
नर्म : सं०पु० (सं० नर्मन्) । विनोद, विहार, सुख, रञ्जन ।
1
नर्मद : वि० ० (सं० ) । सुखद, रञ्जक, आनन्दप्रद । धर्म कर्म नर्मद गुणग्रामः ।
मा० ३.११.१६
नल : सं०पुं० (सं०) । (१) एक वानरयूथप । मा० ५.६०.१ ( २ ) निषध देश महाभारत - प्रसिद्ध राजा का नाम ।
नलिन : सं०पु० (सं० ) । कमल । 'नलिन नयन भरि बारि । मा० ६.११४ ख नलिनी : सं०स्त्री० (सं० ) । कमलिनी, कमल वृक्ष या कमल पुष्प । 'कबहुं कि नलिनी करइ बिकासा । मा० ५.६.७
नलु : नल+कए० । (१) वानरयूथप विशेष । कवि० ५.२६ ( २ ) राजा नल । 'बिगत बिषाद भए पारथ नलु ।' विन० २४.३
नव : ( १ ) संख्या (सं० नवन्) । नौ । 'सात दीप नव खंड लौं ।' वैरा० ५० (२) वि० (सं० ) । नवीन । 'नव पल्लव फल सुमन सुहाए । मा० १.२२७.५ (३) नवइ । झुकता है, नम्र पड़ता है । 'डाटेहि पै नव नीच ।' मा० ५.५८ / नव नवइ : (सं० नमति > प्रा० नमइ = नवइ ) आ०प्र० । प्रणत होता है, झुकता है । 'नवे नाथ नाक को ।' हनु० १२
--
नवगुन : (१) यज्ञोपवीत के ३ x ३ = ६ सूत्र (गुण) (२) ब्राह्मण के नव-धर्म:शम, दम, तप, शौच, क्षमा, ऋजुता, ज्ञान, विज्ञान और आस्तिकता । ( गी० १८.४२) । 'नाथ एक गुन धनुष हमारें । नवगुन परम पुनीत तुम्हारें । मा०
१.२८२.७
नवद्वार: नो छिद्रों (द्वारों) वाला । 'नवमी नवद्वार पुर बसि जेहिं न आपु भल कीन्ह ।' विन० २०३.१० ( अथवं ० में शरीर को नव द्वारों की अयोध्यापुरी कहा गया है— 'अष्टाचत्रा नवद्वारा देवानां पूरयोध्या ।' और गीता में भी— 'नवद्वारे पुरे देही' आता है । नाक, कान, नेत्र, मुख, मूत्राङ्ग तथा मलत्यागाङ्ग के नव छिद्र ही इस नगर के नव द्वार हैं) ।
नवधा : वि०स्त्री० (सं० ) । नौ प्रकार की ( भक्ति ) | नवधा भक्ति के नौ अङ्ग हैं - सत्संग, कथाश्रवण, गुरुसेवा, गुणकीर्तन, जप, विषय -विराग, समदर्शिता, सन्तोष और निश्छल समर्पण । मा० ३.३५-३६
नवनि: सं० स्त्री० । नति, नम्रता, झुकने की क्रिया । 'नवनि नीच के अति दुखदाई ।'
।
मा० ३.२४.७
नवनिद्ध : नवनिधि ।
नवनिधि : (सं० - महापद्मश्च पद्मश्च शङ्खो मकर-कच्छपौ । मुकुन्द - कुन्दनीलाश्च खर्वश्च निधयो नव ।) 'हरषे जनु नवनिधि घर आई ।' मा० २.१३५.१ ( यहाँ