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तुलसी शब्द-कोश
मा० ३.२१.५ (जिस प्रकार उल्कापात राजा के विनाश का सूचक होता है
उसी प्रकार खरदूषन-विनाश रावण के विध्वंस का सूचक था।) धुकि : पूकृ० (सं० ध्र गतिस्थैर्ययोः)। (१) झुककर, घुमड़न के साथ नत होकर।
'जलद घन घटा धुकि धाई है।' हनु० ३५ (२) स्थिर हो-झुककर-चलकर ।
'सुनि कल बेनु धेनु धुकि धैया ।' कृ० १६ धुके : आ०प्रए । रुक-रुक चलती है , धकधकती है, काँप-काँप जाती है । 'तुलसी
जिन्ह धाएँ धुकै धरनी।' कवि० ६.३३ धुज : ध्वज । धुजा : ध्वजा । 'कदलि ताल बर धुजा पताका ।' मा० ३.३८.२ Vधुन धुनइ : (सं० धुनाति, धूनोति-धू कम्पने) आ०प्रए । झिटकता है,
झकझोरता है, कपाता है (रुई के समान धुनकता है) 'जो जहँ सुनइ धुनइ सिरु
सोई ।' मा० २.४६.८ धुनत : वकृ००। (१) कपाते। 'करनि धुनत धनु तीर ।' गी० २.६६.२
(२) झिटकते, ताल ठोंक झकझोरते । 'बाजे बाजे बीर बाहु धुनत समाज के।'
कवि० १.८ धुनहिं : आ०प्रब० । धुनते हैं (झिटकते हैं) । 'धुनहिं सीस पछिताहिं ।' मा० २.६६ धुना : भूकृ.पु । झिटका (पीट लिया)। 'पुनि कालनेमि सिरु धुना।' मा०
६.५६.३ धुनि : (१) प्रकृ० । धुनकर, झिटक कर (पीट कर)। 'परेउ धरनि धुनि माथ ।'
मा०२.३४ (२) सं०स्त्री० (सं० ध्वनि)। नाद, शब्द, गूंज, घोष (दे० पंचधुनि) । 'कंकन किंकिनि नूपुर धुनि सुनि ।' मा० १.२३०.१ (३) नदी।
दे० देवधुनि। धुनिए : आ०कवाप्रए० । झिटकिए (चाहे पीट डालिए)। 'बरज्यो न करत
कितो सिर धुनिए।' कृ० ३७ धुने : भुकृ०पु०ब० । झिटक डाले (पीट लिये) । 'बारिद बचन सुनि धुने सीस
सचिवन्ह ।' कवि० ५.२० धुनेउ, ऊ : भूकृ०पू०ए० । धुना, धुनका, झिटकारा (पीट लिया)। 'नृप सनेहु
लखि धुने उ सिरु ।' मा० २.७३ धुन्यो : धुनेउ । 'पर्यो धरनि ब्याकु सिर धुन्यो ।' मा० ६.६५.७ धुर : (१) सं०स्त्री० (सं० धुर्>प्रा० धुरा)। भार, बोझ । 'सकल घरम धर
धरनि धरत को।' मा० २.२३३.१ (२) वि०पु० (सं० धुर्य)। धुरीण (भार
धारण करने में समर्थ) श्रेष्ठ । हिमवानु धरनि-धर धुर धनि ।' पा०म०६ धुरंधर : (१) वि०० (सं०) । भार धारण-समर्थ, धुरीण । 'धरम धुरंधर नृप
रिषि जानी।' मा० १.१४३.६ (२) श्रेष्ठ ।