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तुलसी शब्द-कोश
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घरें : क्रि०वि० । धारण किये (मुद्रा में)। 'मम पाछे धर धावत धरें सरासन बान ।'
मा० ३.२६ घरे : भूकृ०० (ब०)। (१) रखे। 'आनि धरे प्रभु पास ।' मा० ६.३२ क
(२) धारण किये हुए । 'हृदय आनि सिय राम धरे धनु भाथहि । पा०म० १ घरेउ : आ०-भूक००+ उए । मैंने धारण किये, ग्रहण किये । 'एहि बिधि
धरेउँ बिबिध तनु ।' मा० ७.१०६ घ घरेउ, ऊ : भूकृ००कए। धारण किया, ग्रहण किया। 'राम धरेउ तनु भूप।'
मा० ७.७२ क धरेन्हि : आ० - भूकृ.पु+प्रब० । उन्होंने पकड़े । तदपि न उठइ धरेन्हि कच
जाई ।' मा० ६.७६.३ धरेसि : आ०- भूकृ०पु+प्रए । उसने पकड़ा, पकड़े । 'कोपि कूदि द्वो धरेसि
बहोरी।' मा० ६६८.६ घरेहु : (१) आ०-भ०+आज्ञा+मब० । तुम रखना । 'संतत हृदय धरेहु मम
काजू ।' मा० ४.१२.६ (२) आ०-भूक००--मब० । तुमने रखा। 'नर
तनु धरेहु संत सुर काजा।' मा० २.१२७.६ 'घरै : धरहिं । रखते हैं । 'छबि भूरि अनंग की दूरि धरै।' कवि० १.३ धरै : (१) धरइ । रखता है । 'मन संतोष धरै ।' विन० ६२.४ (२) रखे । 'चित्त
दिआ भरि धरै दृढ़।' मा० ७.११७ ख (३) भकृ० अव्यय । पकड़ने । 'ताहि
धरै जननी हठि धावा ।' मा० १.२०३.८ . धरंगो : आ०भ००प्रए । धारण करेगा। 'सुत सिर छत्र धरैगो।' गी० २.६०.३ धरो : धर्यो। (१) रखा हुआ । 'हरो धरो गाड़ो दियो धन ।' दो० ४५७
(२) पकड़ रखा । 'जोग सिधि साधन रोग बियोग धरो सो।' विन० १७३.३ धरोइ : रखा ही (रख लिया सो रख लिया)। 'दीपक काजर सिर घर्यो, धर्यो
सो धर्यो धरोइ ।' दो० १०६ घरौं : धरउँ । (१) धारण करूँ। 'कर न धरौं धनु माथ ।' मा० १.२५३
(२) रखू, रखता हूं। 'धरौं सचि पचि सुकृत सिला बटोरि ।' विन० १५८.४ घरी : धरहु । पकड़ो । 'कह्यो धरौ धरो धाए बीर बलवान हैं ।' कवि० ५.७ धर्म : (दे० धरम) मा० १.७७.५ धर्मतरु : धर्मरूपी वृक्ष । मा० ३ श्लो० १ धर्मपरायन : धर्म में सदा तत्पर । मा० ७.१२७.२ धर्ममय : वि० (सं.)। धर्म रूप । 'परम धर्ममय पय दुहि भाई।' मा० ७.११७.१३ धर्मरत : धर्म परायण । मा० ७.२१.७ धर्मसील : धरमसील ।