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________________ तुबमी सबको 487 धरमध्वज : (सं० धर्मध्वज) धर्म का झंडा-ठाये दम्भी-धर्म व्यवसायी । “धींग धरमध्वज धंधक धोरी।' मा० १.१२.४ धरमजतु : सं०पु०कए । एकान्त धर्म निष्ठा । मा० २.१७१.६ घरममय : वि० (सं० धर्ममय)। धर्मयुक्त । मा० २.१७१.४ धरमसील : वि० (सं० धर्मशील)। धर्मात्मा । मा० १.१५५.२ धरमा : धरम । मा० १.२.११ घरमु, मू : धरम+कए । एकमात्र धर्म । 'धरमु धरेउ सहि संकट नाना ।' मा० २.६५.४, २.२०४.७ धरषा : भूकृ०० (सं० धर्षित>प्रा० धरिसिअ)। आक्रान्त हुआ, दबाव में पड़ा। 'डोले धराधर धारि धराधरु धरषा।' कवि० ६.७ धरषि : पूकृ० (सं० धृष्ट्वा >प्रा० धरिसिअ>अ. धरिसि) । धर्षण करके, दलित करके, तिरस्कृत करके, आक्रान्त करके । 'रिपु बल धरषि हरषि कपि ।' मा० घरहरि : सं०स्त्री० । प्रबोध देना (धर्य बंधाना), सहलाना, पुचकारना । 'चिकुर'.. करनि बिबरत' अहिसिसुससि सन लरत, धरहरि करत रुचिर जन जग फनी।' गी० ७.५.३ घरहि, ही : आ०प्रब०। (१) पकड़ते हैं । 'मारहिं काटहिं धरहिं पछारहि ।' मा० ६.८१.५ (२) धारण करते हैं । 'गिरि निज सिरन्हि सदा तृन घरहीं।' मा० १.१६७.७ घरहि : आ०-आशा-मए० । तू धारण कर । 'धरनि धरहि मन धीर ।' मा० १.१८४ घरहुं : आ०-आज्ञा, कामना-प्रब० । धारण करें। 'उर धरहं जुबती जन बिलोकि तिलोक सोभा सार सो।' पा०म० छं० १६ घरहु, हू : आ०मब० । (१) धारण करो । 'अब उर धरहु ब्रह्म बर बानी।' मा० १.७५.२ (२) धारण करते हो । 'व्यर्थ धरहु धनु बान कुठारा ।' मा० १.२७३.८ (३) पकड़ो। धरहु कपिहि धरि मारहु ।' मा० ६.३२ ख (४) रखो। 'तुलसी जनि पग धरहु गंग मह साच ।' बर० २४ घरहुगे : आ.भ.पु०मब० । रखोगे। 'अधम आचरन कछु हृदय नहिं धरहुगे।' विन० २११.२ घरा : (१) सं०स्त्री० (सं.)। पृथ्वी। 'धरा अकुलानी ।' मा० १.१८४.४ (२) भूकृ०० । धारण किया। 'कोपि कर धनु सर धरा ।' मा० १.८४ छं० (३) पकड़ा । 'धाइ धरा जिमि जंतु बिसेषा ।' मा० ६.२४.१५ पराइ : पूकृ० (सं० धारयित्त्वा>प्रा० धराविम>अ० धरावि)। धरा कर, धारण करके । 'असि देह धराइ के जायें जिये ।' कवि० ७.३८ ।
SR No.020839
Book TitleTulsi Shabda Kosh Part 01
Original Sutra AuthorN/A
AuthorBacchulal Avasthi
PublisherBooks and Books
Publication Year1991
Total Pages564
LanguageHindi
ClassificationDictionary
File Size32 MB
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