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तुलसी शब-कोश
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दुरि : पूक० । छिप (कर) । 'कबहुंक प्रगट कबहुं दुरि जाई ।' मा० ६.७६.१२ दुरित : सं० (सं०) । पातक । मा० १.४३.४ दुरितु : दुरित+कए । कवि० ७.८१ दुरीदुरा : सं०पु+क्रि०वि० । लुकाछिपी; अज्ञात-अदृश्य रहकर । 'दुरीदुरा करि
नेगु सुनात जनायउ।' जा०म० १४८ दुरे : भूकृ००ब० । छिपे, छिप गये । मा० १.८४ छं० दुरेउ : भूकृ००कए । छिप गया। मा० १.१५६.५ 'जन निहार महुं दिनकर
दुरेऊ ।' मा० ६.९३.४ रंगी : आ०म०स्त्री०प्रए । छिपेगी। क्यों दुरंगी बात ।' विन० २६३.३ दुध : (१) वि० (सं.)। दुर्गम । 'दुस्तर दुर्ग दुरंत..... भगवंत ।' मा० १.६१ ख
(२) सं०० (सं.)। गढ़, किला। 'दहेउ दुर्ग अति बंका।' मा. ५.३३.५ (३) गुप्त स्थान, छिपने का दुर्गम स्थान । 'जातुधान दावन परावन
को दुर्ग भयो।' हनु०७ दुर्गम : वि० (सं०) । दुष्प्राप्य, कठिनता से पहुंचने (पाने) योग्य । 'दुराधरष दुर्गम
भगवाना।' मा० १.८६.४ . दुर्गा : सं०स्त्री० (सं०) । देवी महामाया जिन्होंने महाकाली, महालक्ष्मी और महा_____ सरस्वती रूपों से असुर-संहार किया। मा० ७.६१.७ दुर्घट : वि० (सं.)। जिसका घटित होना कठिन हो। (१) कठिनता से गढ़ा
(बनाया) हुआ । 'कोपि कपिन्ह दुर्घट गढ़, घेरा।' मा० ६.४६.६ (२) कठिन; विषम, गहन । 'जहाँ सब संकट दुर्घट सोचु ।' कवि० ७.५३ (३) दुष्कर।
'दुर्घट है तप ।' कवि० ७.८६ दुर्जन : सं०+वि० (सं.)। दुष्ट व्यक्ति । मा० ४.१७.४ दुर्जय : वि० (सं.)। जिसे जीत पाना कठिन हो=अजय्य । विन० ५८.५ दर्दोष : दुष्ट कर्मों से जनित कुसंस्कार आदि दोष । विन० ५६.१ दुर्घर्ष : दुराधरष (सं०) । विन० ५०.३ दुर्बचन : सं०० (सं० दुर्वचन) । दूषित वचन, कष्टकर कथन । 'मैं दुर्बचन कहे ___ बहुतेरे ।' मा० १.१३८.४ दुर्बल : वि० (सं.)। कृशकाय । दुर्बलता : सं०स्त्री. (सं.)। कृशता, क्षीणता । मा० ७.१२२.१० दुर्बा : सं०स्त्री० (सं० दूर्वा) । दूब=एक प्रकार की घास जो मङ्गल कार्यों में
उपयोगी मानी गयी है। मा० ७.३.५ दुर्बाद, दा : सं०० (सं० दुर्वाद) । दुर्वचन, कटूक्ति, दूषित कथन । मा० ५.२०॥