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तुलसी शब्द-कोश
दीन्हा : दीन्ह । मा० १.३०.४
दीन्हि : दीन्ह + स्त्री० । दी । 'सुगति दीन्हि रघुनाथ । मा० १.२४ दीन्हिउँ : दीन्हि + उए० । मैंने दी। 'प्रियबादिनि सिख दीन्हिउँ तोही ।' मा०
२.१५.१
दीन्हिसि : दीन्हि + ए० । उसने दी । 'दीन्हिसि अचल बिपति के नेई ।' मा०
२.२६.६
बीन्हीं : दीन्ही + ब० । दीं । 'देवन्ह दीन्हीं दुंदुभीं ।' मा० १.२८५
दीन्ही : दीन्हि । 'करि प्रनामु तिन्ह पाती दीन्ही । मा० १.२६०.३ दीन्हें: (१) दिये हुए देकर । 'जोगवत रहहहि मनहि मनु दीन्हें । मा० २.२१४.६ (२) देने पर । 'राम सपथ दीन्हें हम त्यागे ।' मा० ५.५४.४
दीन्हे : दीन्हा + ब० । दिये । 'उचित बास हिम-भूधर दीन्हे ।' मा० १.६५.८
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दीन्हेउ : दीन्ह + ए० । दिया । 'दीन्हेउ कटकु चलाइ ।' मा० २.२०२ बीन्हेहु : दीन्हे + मब० । तुमने दिया । 'होइ प्रसन्न दीन्हेहु सिव पद निज ।'
विन० ७०३
दीन्हो : दीन्हेउ । ' को न लोभ दृढ फंद बाँधि करि त्रासन दीन्हो ।' कवि० ७.११७ दीप: सं०पु० (सं०) । (१) दीपक । मा० १.२१ से घिरा भू-भाग, जम्बूद्वीप आदि पुराण प्रसिद्ध नाना ।' मा० १.२५१.७ 'सात दीप नव खंड : दीपक : दीप (सं० ) । ' भयो मिथिलेस मानो दीपक बिहान को ।' गी० १.८८.४ दीपमालिका : सं० स्त्री० (सं०) । (१) दीपक श्रेणी (२) दीपावली पर्व । 'खाती दीपमालिका ठठाइयत सूप हैं ।' कवि० ७ १७१
दीप - सिखा : सं० स्त्री० (सं० दीपशिखा ) । दीपक की लौ । मा० ७.२३०.७
(२) (सं० द्वीप) । टापू, जल भू-भाग । 'दीप दीप के भूपति वेरा० ५०
दीपा : दीप । मा० ७.११८.८
दीपावलि, ली : सं० स्त्री० (सं० ) । दीपक श्रेणी । गी० १.५.१
दीपिका : सं ० स्त्री० (सं०) । दीपक + दीप्ति समूह । 'रूप दीपिका निहारि मृग मृगी नर नारि बिथके ।' गी० १.८४.६
दीबे : भक०पु० (सं० दातव्य > प्रा० देअव्व ) | देने । 'दीबे जोग तुलसी न लेत काहू को कछुक ।' कवि० ७.१६५
दो : भकृ०पु०ए० । देना । 'समुझि सिखावन दीबो ।' कु० ३५
दोर्याट : दिअटि । 'सोभा की दीयटि मानो रूप-दीप दियो है ।' गी० १.१०.३ दीयो: सं०पु०कए० (सं० दीपकम् > प्रा० दीययं > अ० दीयउ ) । प्रदीप । 'जड़ जाहिंगे चाटि दिवारी को दीयो ।' कवि० ७.१७६
वीर : वि० (सं० दीर्घ ) । लम्बा ( देश या काल में अधिक आयत ) । 'दीरघ रोगी दारिदी ।' दो० ४७७