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तुलसी शब्द-कोश
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वर्शनादेव : (सं.) दर्शन से ही । 'दर्शनादेव अपहरति पापं ।' विन० ५५.८ दर्शनारत : (सं० दर्शनार्त) दर्शन हेतु विकल । विन० ६०.८ दल : सं०० (सं०) । (१) सेना, समूह, यूथ । 'नृप दल मद गंजन ।' मा० ५.२१.८
(२) पत्ती। 'लगे लेन दल फूल मुदित मन ।' मा० १.२२८.१ (३) फूल की पंखुड़ी। ‘राजिव दल नयन ।' गी० ५.४७.१ दिल, दलइ : (सं० दलति-दल विशरणे>प्रा० दलइ) आ०प्रए० । दलन करता
है, छिन्न-भिन्न करता है, नष्ट करता है । जिमि करि निकर दलइ मृगराजू ।'
मा० २.२३०.६ दलकति : वकृ०स्त्री० । दलक उठती, विशीर्ण होने-बिखरने लगती, पानी से द्रवीभूत
होकर थलथलाती । 'महाबली बालि के दबत दलकति भूमि ।' कवि० ६.१६ दलकन : (१) दलका+संब० । दलकों से, झटकों से लगने वाले हृदय पर आघातों
से । 'मंद बिलंद अभेरा दलकन पाइय दुख झकझोरा रे ।' विन० १८९.३
(२) दलकने की क्रिया, बिखराव । दलकि : पूक. । बिखर कर । 'दलकि उठेउ सुनि हृदय कठोरू।' मा० २.२७.४
(२) दलदला कर, द्रवीभूत होकर । 'तुलसी कुलिसहु की कठोरता तेहि दिन
दलकि दली।' गी० २.१०.३ (उभयत्र दोनों अर्थ गुम्फित हैं ।) दलत : वकृ.पु । छिन्न-भिन्न करता-करते, नष्ट करता-ते। 'दलत दयानिधि
देखिए।' दो० २३४ दलतो : क्रियाति००ए०। यदि.'तो.. उच्छिन्न कर डालता । 'जो हौं प्रभु
आयसु ले चलतो। तो यहि रिस तोहि सहित दसानन जातुधान दल दलतो।'
गी० ५.१३.१ दलन : (१) सं०० (सं.)। विनाश । 'महामोह निसि दलन दिनेसू ।' मा०
२.३२६.६ 'दुख दोष दलन छम ।' विन० २७५.१ (२) वि० । नष्ट करने वाला । 'दलन मोह तम सो सु प्रकासू ।' मा० १.१.६ (३) भक० अव्यय ।
नष्ट करने । 'चले दलन खल निसिचर अली ।' मा० २.१२६ छं० दलनि : (१) वि०स्त्री० । दलने वाली, बिनाशिनी । 'दुसह दोष दुख दलनि, करु
देबि दाया ।' विन० १५.१ (२) दलन्हि । पत्तों (से) । दो० ५२६ दलनिहार : वि०० । विनाशकारी । विन० १५६.१ दलन्हि : दल+संब० । दलों, पत्तों (पर), पंखड़ियों (पर) । 'कमलदलन्हि बैठे जनु
मोती।' मा० १.१९६.२ दलमले : भूकृ००ब० (दल विशरणे+मल मर्द ने)। छिन्न भिन्न कर कुचल
डाले; रौंद दिये । 'रनमत्त रावन सकल सुभट प्रचंड भुजबल दलमले ।' मा० ६.६५ छं.