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तुलसी शब्द-कोश
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अपजस : सं० पुं० (सं० अपयशस्) । अयश, अपकीर्ति, कुख्याति । मा० १.७ ख अपजसु : अपजस+कए। एकमात्र अयश। 'घरु जाउ अपजसु होउ ।'
मा० १६६ छं० अपडर : सं० पु० (सं० आत्म-दर>प्रा० अप्पडर) अकारण भय, अपने-आप में
डरना । 'अपडर डरेउँ न सोच समूलें।' मा० २.२६७.३ (दे० अपभय) । अपडरनि : अपडर+संब०। अपने-आप ही भयों से। 'अब अपडरनि डरयो हौं।'
विन० २६६.३ अपडरे : भू०० पु बहु । अपने भीतर भयाक्रान्त हुए । मा० ६.८६ छं० अपत : वि० (सं० अपात्र>प्रा० अपत्त) अयोग्य, नीच, पातकी । कवि० ७६८ अपतु : अपत+कए। अद्वितीय पातकी। 'अपतु अजामिलु गजु गनिकाऊ ।'
मा० १.२६.७ अपनपउ : सं० पुं० कए (सं० आत्मपदम्>प्रा० अप्पणपयं>अ० अत्पणपउ) । ___अपना पद, स्वरूप, स्वाधिकार । अपनाया। मा० २.१६० । अपनपौ : अपनपउ । 'सदा रहहिं अपनपी दुराएँ।' मा० १.१६१.२ अपना : वि. पु. (सं० आत्मन:>प्रा० अप्पणो) निजका । 'उमा कहउँ मैं अनुभव
अपना ।' मा० ३.३६.५ अपनाइ : पू०। अपना करके, अङ्गीकत करके (अपना बनाकर)। मा०
१.१६१.७ अपनाइम, अपनाइए : आ० क० बा० प्रए। अपना बनाइए, स्वीकार कीजिए।
मा० ६.११६.७, विन० २६७.४ अपनाए : भू० कृ० पु बहु० । अपने बना लिए । 'सकृत प्रनाम किएँ अपनाए।'
मा० २.२६६.३ अपनाय : अपनाइ। गी० ५.५१.४ अपनायति : सं० स्त्री०। आत्मीयता, अपनापन, घनिष्ठता। 'देखी सुनी न आजु
लौं अपनायति ऐसी ।' विन० १४७.४ अपनाया भू० कृ० पुं० । अपना बना लिया, स्वीकार किया। 'जब तें रघुनायक
अपनाया।' मा० ७.८६.३ अपनायो : अपनाया+कए । गी० ५.४४.३ अपनावा : अपनाया। 'निज जन जनि ताहि अपनावा।' मा० ५.५०.२ अपनियां : अपनी। 'प्रेम बिबस कछु सुधि न अपनियाँ ।' गी० १.३४.६ अपनी : अपनी में । 'अपनी समुझि साधु सुचि को भा ।' मा० २.२६१.२ अपनी : वि० स्त्री। निज की। मा० २.२८४.१ अपनी-अपना : एक सामूहिक होड़ जिसमें सब पहले कर लेना चाहते हैं। 'देव कहैं
अपनी-अपना अवलोकन तीरथराज चलो रे।' कवि० ७.१४४ ।