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तुलसी शब्द-कोश
तरंगनि : तुरंग+सब० । घोड़ों (को)। 'चुचुकारि तुरंगनि सादर जाइ जोहारे ।' ___गी० १.४६.१ तुरंगा : तुरंग। मा० १.३१६.५ तुरंत : वि०+क्रि०वि० (सं० त्वरमाण>प्रा० तुरंत) । द्रुत गति लेता हुआ
(शीघ्र) । 'जैहउँ नाथ तुरंत ।' मा० ६.६० क तरता : तुरंत । मा० ५.१.७ तुरग : तुरंग (सं०)। मा० २.१८७.४ तुरगा : तुरग । मा० ६.६२.१ तुरत : तुरंत; तुरित । 'तुरत कपिन्ह कहुं आयसु दीन्हा ।' मा० ५३४.७ तुरतहिं : जीघ्र ही । तत्काल ही। तासु कपटु कपि तुरतहिं चीन्हा ।' मा० ५.३.४ तुरा : सं०स्त्री० (सं० त्वरा) । अति शीघ्रता, अति वेग । कवि० ६.५४ तुराई : तुराई+ब० । तुलाइयाँ, गद्दे, दुलाइयाँ । 'बिविध बसन उपधान तुराई ।' ___ मा० २.६१.१ तराई : सं०स्त्री० (सं० तूलिका) । रुई का गद्दा-दुलाई आदि । मा० २.१४.६ तरित : क्रि०वि० (सं० त्वरित) । शीघ्र, तत्काल । 'तुरित गयउ कपि राम पहिं ।
___ मा० ७.२ ख तुरीय : सं०+वि० (सं.) (१) चतुर्थ । (२) चेतन की चतुर्थ दशा जो तीन
अवस्थाओं-जाग्रत, स्वप्न और सुषुप्ति-से परे अन्तर्यामी अवस्था होती है और जो ब्रह्म का ही सूक्ष्म रूप है-दे० 'तीनि अवस्था।' 'तूल तुरीय संवारी
पुनि ।' मा० ७.११७ ग तुरीयमेव : (सं०) चतुर्थदशामात्र (ब्रह्म) । मा० ३.४.६ तुलसि : तुलसी । क्षुपविशेष । मा० १.३४६ ५ तलसिका : तुलसी (सं.)। (१) क्षपविशेष । 'उरन्हि तुलसिका माल ।' मा०
१.२४३ (२) जालन्धर असुर की पत्नी जो तुलसीक्षुप के रूप में अवतीर्ण मानी
गयी है । 'अजहुं तुलसिका हरिहि प्रिय ।' मा० ३.५ क तुलसिदास : तुलसीदास । मा० १.१६६ तुलसी : तुलसीदास ने । 'तुलसी लख्यो राम सुभाउ तिहारो।' कवि० ७.३ तुलसी : सं०स्त्री० (सं०) । (१) तुलसी नामक पूछ्य क्षुपविशेष । 'जो सुमिरत
भयो भांग ते तुलसी तुलसीदासु ।' मा० १.२६ (२) जालन्ध की पत्नी जो तुलसी वृक्ष होकर अवतीर्ण हुई जब विष्णु ने उसका सतीत्व भङ्ग कर जालंधर को मारा; उसके सतीत्व के कारण विष्णु ने उसे अङ्गीकार किया । ‘रामहिं प्रिय पावनि तुलसी-सी।' मा० १.३१.१२ (३) तुलसीदास कवि । मा०. १.१० छं०