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तुलसी शब्द-कोश तिरा : भूकृ.पु । तीर पर पहुंचा, तैर गया, पार हो गया। 'लोह ल लोका
तिरा।' मा० २.२५१ छं० तिरीछी : तिरछी। कवि० २.२१ तिरोछे : क्रि०वि० । वक्रता से, टेढ़े-टेढ़े । 'तिरी, प्रियाहि चित ।' कवि० २.२६ तिरीछे : तिरछे (सं० तिरश्चीन>प्रा. तिरिच्छय)। आड़े-टेढ़े। खंजन मंजु
__ तिरीछे नयननि ।' मा० २.११७.७ तिल : सं०० (सं०)। धान्य विशेष जिससे तेल निकलता है। मा० ३.१६ ख
(२) शरीर में तिलाकार चिन्ह । 'चारु चिबुक तिल जासु ।' दो० १६१ तिलक : सं०० (सं०) । टीका। (१) मस्तक का ऊर्ध्वपुण्ड । 'किएँ तिलक गुन
गन बस करनी।' मा० १.१.४ (२) राज्याभिषेक का टीका। 'रामहि तिलक कालि जौं भयऊ ।' मा० २.१६.६ (३) तिलक के समान उत्तम (शिरोमणि); श्रेष्ठ । 'रघुकुल तिलक जोरि दोउ हाथा।' मा० २.५२.१ (४) तिल का
पुष्प-नासा तिलक को बरनै पारे । मा० १.१६६.८ तिलकु : तिलक+कए । मा० १.३२७.६ तिल-तिल : (तिल के समान) थोड़ा-थोड़ा, धीरे-धीरे । 'जा के मन ते उठि गई
तिल-तिल तस्ना चाहि।' वैरा० २६ तिलांजलि : सं०स्त्री० (सं.)। पितृ कर्म में तिल सहित जल की अञ्जलि। 'देउ
तिलांजलि ताहि ।' मा० ४.२७ तिलांजुलि : तिलांजलि । मा० २.१७०.५ तिली : तेली (प्रा० तेल्लिअ=तिल्लिअ) । 'पेरत कोल्हू मेलि तिल, तिली सनेही ___जानि ।' दो० ४०३ तिल : तिल+कए । एक तिल (की मात्रा)। 'तिल भरि भूमि न सके छड़ाई ।'
___ मा० १.२५२.२ तिलोक : त्रिलोक । मा० २.२०६.३ तिलोकिए : त्रिलोकी भर में तीनों ही लोकों में। ‘मानहुं रह्यो है भरि बानरु
तिलोकिए ।' कवि० ५.१७ तिलोकु : तिलोक+कए । एकीभूत सम्पूर्ण त्रैलोक्य । कवि० ६.५६ तिलोचन : कवि० ७.१५७ तिलौ : तिल भी, तिल भर भी, थोड़ा-सा भी । 'तुलसी तिलो न भयो बाहेर अगार
को। कवि० ५.१२ तिष्टइ : आ० प्रब० (सं० तिष्ठति>प्रा० मागधी--तिस्टइ)। ठहरता है, रह सकता
है। ‘भूत द्रोहँ तिष्टइ नहिं सोई ।' मा० ५.३८.७ तिष्ठन्ति : आ०प्रब० (सं.)। रहते हैं, स्थिति हैं । विन० ५७.५ तिसिरा : त्रिसिरा । मा० ३.२५