________________
402
तुलसी शब्दकोश तड़ागु : तड़ाग+कए० । वह एक सरोवर । 'बागु तड़ागु बिलोकि प्रभु हरषे ।' मा०
१.२२७ तड़ित : सं०स्त्री० (सं० तडित्) । बिजली । मा० १.१४७ तत्, द् : सर्वनाम (सं०) । वह, उसे । मा० ७.१३० श्लो० १ ततकाला : क्रि०वि० (सं० तत्काल) । उसी समय, तत्क्षण, तुरन्त । 'मज्जन फलु
पेखिअ ततकाला।' मा० १.३.१ तत्पर : वि० (सं०) । उसी एक में संलग्न । मा० ४ श्लो० १ तत्र : क्रि०वि० अव्यय (सं.) । वहाँ । 'यत्र हरि तत्र नहि भेदमाया ।' विन० ४७.५ तत्रैव : (तत्र+एव-सं०) । वहीं, वहाँ ही। विन० ५७.५ तत्त्व : सं०० (सं.)। (१) निष्कर्ष, सार, मर्म । 'तत्त्व प्रेम कर मम अरु तोर ।'
मा० ५.१५ (२) रहस्य, अन्तनिहित वस्तु स्वरूप । 'गूढ़उ तत्त्व न साधु दुरावहिं ।' मा० १.११०.२ (३) सांख्य भाव जो सर्वान्तर्यामी हो । 'वेद तत्त्व नृप तव सुत चारी ।' मा० १.१९८.१ (५) वैष्णव दर्शन में तीस तत्त्व-दे०
तत्त्व विभाग। तत्त्वदरसी : वि०० (सं० तत्त्वशिन्) । तत्त्व द्रष्टा, मर्मज्ञ, विश्व रहस्य का
ज्ञाता, ब्रह्मज्ञानी । विन० ४७.६ तत्त्वाविभाग : सांख्यशास्त्र के २५ तत्त्वों का वर्गीकरण-प्रथमतः प्रकृति और पुरुष
(चेतन तत्त्व); फिर प्रकृति का परिणाम महतत्त्व (बुद्धि); उसका विकार अहंकार । प्रकृति और पुरुष अव्यक्त तत्त्व हैं । प्रकृति के विकारों से व्यक्तत्त्व बनते हैं । जो २३ हैं जिनमें से दो ऊपर आ चुके हैं। अहंकार के सात्त्विक (वैकृत), राजस (तेजस) और तामस (भूतादि) भेद होते हैं जिनसे आगे के २१ परिणाम बनते हैं - राजस या तैजस अहंकार शेष दोनों के साथ रहता है । सात्त्विक+राजस से ११ तत्त्वों का परिणाम होता है-मन, ज्ञानेन्द्रिय पञ्चक तथा कर्मेन्द्रियपञ्चक । तामस+तैजस अहंकार से पांच तन्मात्र (शब्द, रूप, रस, स्पर्श और गन्ध) परिणत होते हैं जिन्हें सूक्ष्मभूत कहा गया है। इन्हीं सूक्ष्म भूतों का परिणाम स्थूल महाभूत हैं-आकाश, तेज, जल, वायु और पृथ्वी । 'बरनहिं तत्त्वबिभाग ' मा० १४४ वैष्णव दर्शन में ईश्वर काल,
कर्म, गुण और स्वभाव मिलाकर ३० तत्त्व हैं । मा० ७.२१ तत्त्वमय : वि० (सं०) तत्त्व स्वरूप, निगूढ रहस्यरूप (ब्रह्मस्वरूप) । 'जोगिन्ह
परम तत्त्वमय भासा ।' मा० १.२४२.४ तथा : क्रि०वि० अव्यय (सं०) । उस प्रकार, वैसे । मा० १.११४.४ तथापि : क्रि०वि० अव्यय (सं.)। उस प्रकार से भी, फिर भी, वैसे भी । मा०
१.१६४.८ तदपि : (तद्+अपि-सं०) तो भी, तथापि । मा० १.६.६