________________
400
तुलसी शब्द-कोश तकत : वकृ• (सं० तर्कप > तात)। ताकता-ते। 'तरनि तकत उलूक
___ज्यों।' विन० २२२.२ तकहि, हीं : आ०प्रब० (सं० तर्कयन्ति >प्रा० तक्कंति>अ० तक्कहिं) । ताकते हैं ।
भूप बचन सुनि इत उत तकहीं।' मा० १.२६७.८ तकहु : आ०मब० (सं० तर्कयत>प्रा० तक्कह>अ० तक्कहु) । ताको, देखो, खोजो।
_ 'तकहु गिरि कंदर ।' मा० ६६६.७ तकि : पूकृ० । ताक कर (लक्ष्य साध कर) । 'तकि तकि तीर महीप चलावा ।' मा०
१.१५६.३ तकिया : सं०स्त्री० (फा० तकिय:-आराम की जगह, सिरहाने रखने की चीज)।
उपधान, आश्रय । 'मोसे दीन दूबरे को तकिया तिहारिये ।' हनु० २२ तक : आ०.आज्ञा-मए० (सं० तर्कय>प्रा० तक्क>अ० तक्कु)। तू देख, खोज,
लक्ष्य कर । 'तुलसी तक ताहि सरन ।' विन० १३३.५ तके : भूकृ०पुब० (सं० तकित>प्रा० तक्किय) । खोजे, लक्ष्य कर चले । 'देवन्ह
तके मेरु गिरि खोहा ।' मा० १.१८२.६ ।। तकेउ : भूकृ०पु०कए । तोका, लक्ष्य किया । 'सियहि बिलोकि तकेउ धन कैसें ।'
मा० १.२५६.८ तकै : तकहिं । 'बनिता सुत भौंह तक सब वै ।' कवि० ७.४१० तक : तकइ । 'तक नीचु जो मीचु साधु की।' विन० १३७.२ तक्यो : तके उ । 'जन तक्यो तड़ाग तृषित गज ।' गी० २.६८.३ तग्य, रा : वि० (सं० तज्ज) । उस विषय का ज्ञाता, तत्त्व द्रष्टा । 'सोइ सर्बग्य
तग्य सोइ पंडित ।' मा० ७.४६.६ तज : तजु । तू छोड़ दे । 'ती तज बिषय बिकार ।' विन० २०५.१ तिज, तजइ, ई : (सं० त्यजति>प्रा० तजइ-छोड़ना) आ०प्रए० । छोड़ता है।
'तदपि न मृग मग तजइ नरेसू ।' मा० १.१५७.६ (२) छोड़ सकता है। परंतु
पन रा उ न तजई ।' मा० १.२२२.४ तजउ : आ० उए । छोड़ता-ती हूं; छोड़ सकता-ती हूं। 'तजउँ न नारद कर
उपदेसू ।' मा० १.८१.६ तजउ : आ०-आज्ञा, संभावना-प्रए । वह छोड़ दे (उसे छोड़ देना चाहिए)।
'सो पर नारि..... तजउ ।' मा० ५.३८.६ तजत : वकृ०० । छोड़ता, ते । 'तजत बमन जिमि जन बड़ भागी।' मा० २.३२४ तजन : भकृ० । छोड़ना, छोड़ने को। 'तजन चहत सुचि स्वामि सनेही ।' मा०
२.६४.३ तजब : भकृ०० । छोड़ना (चाहिए) । 'तजब छोभु ।' मा० २.६६.५ तहि, हीं : आ०प्रब० । छोड़ते हैं । 'जो दुखु पाइ तजहिं तनु प्राना।' मा०
२.८१.७