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तुलसी शब्द-कोश
डेराना : भू००पु । डर गया। 'मुनि गति देखि सुरेस डेराना।' मा०
१.१२५.५ डेराने : भूक०० ब० । डर गये । “उग्र बचन सुनि सकल डेराने ।' मा० ६.४२.६ डेरावहिं : आ० प्रब० । डराते हैं, भय दिखाते हैं, भयभीत करते हैं। 'कपि लीला
करि तिन्हहि डेरावहिं।' मा० ६.४४.५ डेराहि, हीं : आ०प्रब० । डरते हैं । भय खाते हैं। 'कुटिल काक इव सबहि
डेराहीं।' मा० १.१२५.८ डेराहु, हू : आ० मब० । डरो, भयभीत होओ। 'जनि हृदय डेराहू ।' मा०
६.३२.६ डेरे : 'डेरा' का रूपान्तर । शिविर, रुकाव, आश्रय (द्वार)। 'दीन बित्तहीन हौं
बिकल बिन डेरे ।' विन० २१०.४ डेरो : डेरा+कए । निवास । 'हृदय करहु तुम डेरो।' विन० १४३.८ डेल : सं० । ढेला, मिट्टी या पत्थर का लोंदा (निरर्थक वस्तु)। 'नाहिन रास
रसिक रम चाख्यो ता तें डेल सो डारो।' कृ० ३४ डेवढ़ : वि० (सं० द्वयर्ध>प्रा० देवड्ढ) । ड्योढ़ा, ड्योढ़े। 'बिधि तें डेवढ़ लोचन
लाहू ।' मा० १.३१७.५ डोंगर : सं०० (प्रा० डुंगर= डोंगर) । पर्वत, पहाड़ी 'चित्र विचित्र बिबिध मृग
डोलत डोंगर डांग ।' गी० २.४७.१२ डोरि : डोरी रस्सी । 'लसति पाटमय डोरि ।' मा० १.२८८ डोरिआए : भूकृ००ब० । डोरी में बाँधे हुए। 'कोतक संग जाहिं डोरिआए।'
मा० २.३०३.४ डोरी : सं०स्त्री० (सं० दोरी>प्रा० डोरी) । रस्सी। 'मम पद मनहि बाँध बरि
डोरी ।' मा० ५.४८.५ डोल : (१) डोलइ । 'चिक्करहिं दिग्गज डोल महि ।' मा० १.२६१ छं०
(२) हिलती थी । 'तब बल नाथ डोल नित धरनी।' मा० ६.१०४.५ /डोल डोलइ : (सं० दोलते-दुल उत्क्षेपे>प्रा० डोल्लइ-हिलना, आन्दोलित होना, डगमगाना, चलित होना) आ०प्रए । आन्दोलित होता-ती है। 'अचल
सुता मन अचल बयारि कि डोलइ।' पा०म०५८ डोलत : वकृ०० । (१) हिलते, घूमते, भटकते । 'दीन मलीन छीन तनु डोलत ।'
कृ० ३५ (२) काँपते (में), आन्दोलित होते (समय) । 'डोलत धरनि सभासद
खसे ।' मा० ६.३२.४ डोलति : वकृस्त्री० । हिलती, काँपती। 'चलत दसानन डोलति अवनी ।' मा०
१.१८२५ डोलहिं : आ०प्रब० (सं० दोलन्ते>प्रा. डोल्लंति>अ० डोल्लहिं)। (१) विचल