________________
378
तुलसी शब्द-कोश
झूलन : भकृ० अव्यय । झूलने । 'राघो के रुचिर हिंगोलना झूलन जैए।' गी० ___७.१८.१ झलहि : आ०प्रब० । झूलते-ती हैं । 'झूलहिं झुलावहिं ओसरिन्ह ।' गी० ७.१८.५ झोंटी : सं०स्त्री० (सं० झुण्ट>प्रा० झुटी=झोंटी) । उलझा हुआ। केशसमूह । __ मा० २.१६३.७ झोटिंग : सं०० (सं० जोटिङ्ग)। शिव, शिवीपासक श्मशानसाधक योगी+
झोंटाधारी । 'प्रथम महा झोटिंग कराला ।' मा० ६.८८.१ झोपरी : सं०स्त्री० (प्रा० झुपड़ी) । झोंपड़ी, कुटी, तृणकुटीर । 'ख्याल लंका लाई
कपि रांड़ की सी झोपरी ।' कवि० ६.२७ झोरी : सं०स्त्री० (सं० झोलिका>प्रा. झोलिआ>अ० झोली)। लम्बी थेली।
ओझरी की झोरी काँधे ।' कवि० ६.५० झोलिन्ह : झोली+संब० । झोलियों (में) । 'झोलिन्ह अबीर पिचकारि हाथ ।'
गी० ७.२२.२ झौंसिअत : वकृ.पुकवा० । झुलसे जाते । 'तात तात तौंसिअत झौंसिअत झारहीं।'
कवि० ५.१५
टकोर, रा : सं०स्त्री० (सं० टं+कोर =कुर शब्दे +घन्) । टंकार ध्वनि । मा०
३.१६ छं० टकोरा : टंकोर । मा० ६.६८.२ टंकिका : सं०स्त्री० (सं.) । टांकी, पत्थर आदि काटने की छेनी । दो० ३४२ टई : (१) सं०स्त्री० (सं० तय गतौ) । चाल, चालाकी । 'करत फिरत बिनु टहल
टई है।' विन० १३६.७ (२) बाधा, आतङ क । 'भृगुपति की टारी टई।'
गी० ५.३७.४ टकटोरि : पूर्व० । टटोल कर, स्पर्श से देखभाल कर । 'टकटोरि कपि ज्यों नारियरु
सिरु नाइ सब बैठत भए।' जा०मं छं० ११ टकोर : टॅकोर । 'ट' ध्वनि । 'प्रभु कीन्हि धनुष टकोर ।' मा० ३.१६ छं० /टर, टरइ, ई : (सं टलति-टल वैक्लव्ये>प्रा० टलइ-चलित होना, खिसकना,
हटना) आ०प्रए । टलता है । (१) स्थान से हटता है । :लगे उठावन टरइ