________________
362
तुलसी शब्द-कोश मुहारत : वक०० (दे० जोहारु) । जोहार करता-ते। 'मिलत जुहारत भूप ।'
रा०प्र० ६.२.७ जूठनि : जूठनि । गी० १.३६.५ जू : जिउ, जीव । जी । 'बालक नृपाल जू के।' कवि० १.१२ /जूझ जूझइ : (सं० युध्यते>प्रा० जुज्झइ-लड़ना, संग्राम करना) आ०प्रए ।
युद्ध करता है । भिड़ता है लड़ता है। 'राढ़उ राउत होत फिरि के जुझे।'
विन० १७६.६ जूझ : संपु० (सं० युद्ध>प्रा० जुज्झ)। संग्राम । 'जूझ जुआ जय जानि ।'
रा०प्र० २.४.२ जूझा : जूझ । 'करब कवन बिधि रिपु सौं जूझा ।' मा० ६.८.७ जूझिबे : भकृ०० (सं० योद्धध्य>प्रा० जुज्झिअव्वय)। युद्ध करने । 'जूझिबे
जोगु न ठाहरु नाठे।' कवि० ६.२८ जूझिबो : भकृ.पुं०कए० (सं० योद्धव्यम् >प्रा० जुझिअव्वं>अ० जुझिव्वउ)। ___लड़ना । 'के जूझिबो कि बूझिबो।' दो० ४५१ जूझ : युद्ध करने से । 'बड़ि हित हानि जानि बिनु जूझें ।' मा० २.१९२.८ जूझे : (१) भूक००ब० । लड़े, युद्ध में काम आये, लड़ मरे । 'जूझे सकल सुभट
करि करनी।' मा० १.१७५.६ (२) 'जूझा' का रूपान्तर । युद्ध । 'जूझे तें
भल बूझिबो।' दो० ४३१ जूझ : (१) भक० । जूझने, युद्ध करने । 'पुनि रघुपति से जूझै लागा।' मा०
६.७३.१० (२) जूझइ । 'क्यों कबंध ज्यों जूझै ।' विन० २३८.१ जूट : सं०० (सं०) । समूह, गुम्फ । जूड़ा । 'शिरसि संकुलित कल जूट पिंगल ___ जटा।' विन० ११.२ जूटी : भूकृ०स्त्री०ब० । जुट गईं, एकत्र हुई। 'ल कर खप्पर जोगिनि जूटीं ।' ___ कवि० ६.५१ जूठन : जूठनि । विन० १७०.३ जूठनि : सं०स्त्री० (सं० जुष्टान्न>प्रा० जुटण्ण) । अच्छिष्ट अन्न, खाते समय गिरे
या फेंके हुए सीथ । 'जूठनि परइ अजिर महें।' मा० ७.७५ जूड़ी : (१) सं०स्त्री० । शीतज्वर, जाड़ा बुखार । 'स्वरस लेहिं जनु जूड़ी आई ।'
मा० ७.४०.२ (२) ठंढक (३) ठंढी । 'राम नाम को प्रभाउ जानि जूड़ी आगि
है।' विन० ७०.२ जूड़े : वि०पु०ब० । ठंढे । 'जूड़े होत थोरे, थोरे ही गरम ।' विन० २४६.१ जूथ, था : सं०० (सं० यूथ) । (१) समूह । 'जूथ जूथ मिलि सुमुखि सुनयनीं ।'
मा० १.२८६.२ (२) सेना की टुकड़ी। 'सुनहु सकल रजनीचर जूथा।' मा० १.१८१.५