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तुलसी शब्द-कोश
छटि : भूकृ.पुं०ब० । छटे हुए, चुने हुए । 'साजि चढ़े छटि छैल छबीले ।' कवि०
६.३२ छ : संख्या (सं० षष्>प्रा० छ) । छह । 'साथ किरात छ सातक दीन्हे ।' मा०
२.२७२८ छंड : छाँडइ । छोड़ दे, ग्याग करे । 'जाय सो जती कहाय बिषय बासना न छंडें ।'
कवि० ७.११६ छंद, दा : सं०पु० (सं० छन्दस्) । (१) पद्य । 'जनु तनु धरै सकल श्रुति छंदा ।'
मा० १.३००.४ (२) पद्य विशेष-हरिगीतिका आदि । 'छंद सोरठा सुन्दर दोहा ।' मा० १.३७.५ (३) (सं० छन्द) अभिप्राय, स्वेच्छा । 'रिषिबर तह छंद
बास ।' गी० २.४३.२ छई : (१) भूकृस्त्री० । छा गई, व्याप्त हुए । 'अंग पुल कावलि छई।' मा०
१.३१८.छं० (२) छय (सं० क्षय) । राजयक्ष्मा रोग । ‘पर सुख देखि जरनि __ सोइ छई।' मा० ७.१२१.३४ छए : छये। छगन : सं०० (सं० छ=शिशु+गण) । बालक (दुलराने में प्रयुक्त) । 'छगन
छबीले छोटे छया ।' गी० १.२०.२ छगनमगन : क्रि०वि०+वि० (सं० छगण-मग्न) । शिशुगण के मध्य क्रीडारत ।
'छगनमगन अंगना खेलिही मिलि ।' गी० १.८.३ छछुदरि : सं०स्त्री० (सं.)। मूषिक जातीय जन्तुविशेष जो छू-छू ध्वनि करता है
और कहा जाता है कि उसे साँप निगल ले तो मर जाता है तथा पकड़ने के बाद
छोड़ दे तो अन्धा हो जाता है। 'भइ गति साँप छछंदरि केदी ।' मा० २.५५.३ छटनि : छटा+संब० । छटाओं। ‘बिधि बिर, बरुथ बिद्युत छटनि के।' कवि०
२.१६ छटा : सं०स्त्री० (सं०) । (१) द्युति, आभा-पुञ्ज (२) समवाय (३) निरन्तर
रेखा, श्रेणी। छटानि : छटनि । छटाओं (से) । 'श्रोनित छीट छटानि जटे ।' कवि० ६.५१ छठ : वि० (सं० षष्ठ>प्रा० छ?) । छह संख्या का पूरक, छठा । मा० ३.३६.२ छठी : छठ+स्त्री०। (१) छह संख्या की पूरणी। (२) तिथिविशेष ।
(३) कार्तिकेय-पत्नी देवसेना देवी जो नवजातकों की रक्षिका तथा प्रसवदेवी मानी गयी हैं=षष्ठी देवी । (४) जन्म से छठे दिन षष्ठी देवी के उपलक्ष
में किया जाने वाला उत्सव । गी० १.४.१२ छठे : छठे...में । 'छठे श्रवन यह परत कहानी।' मा० १.१६६.२