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तुलसी शब्द-कोश
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अदेय : वि० (सं०) जो दिया जा न सके, जो देने योग्य न हो । मा० १.१४६.८ अदोषा : वि० (सं० अदोष) दोषरहित । निष्कलुष । 'राम पेम बिधु अचल
अदोषा।' मा० २.३२५.६ अद्भुत : सं० पु+वि० (सं० न भूतमिति अद्भुतम्) अभूतपूर्व, अपूर्व,
आश्चर्यजनक (२) नौ रसों में से एक रस जिसका स्थाई भाव विस्मय होता
है। मा० १.१६२.छं० अद्रि : सं० पुं० (सं.)। पर्वत । विन० ४३.४ अद्वितीय : वि० (सं०) जिससे दूसरा कोई न हो=द्वितीय रहित; अद्वैत, अनुपम ।
विन० ५३.३ अद्वैत : वि०+सं० पुं० (सं.) द्वैतरहित, अद्वितीय, अभेद, अखण्ड, अनेकत्व
रहित, एकमात्र सत्ता=ब्रह्मा० । मा० ७.१३.छं०६ अध : अव्यय (सं० अधस्) नीचे । 'अध अर्ध बानरु ।' कवि० ५.१७१ अधगति : सं० स्त्री० (सं० अधोगति) तीन प्रकार की जीव-गतियां दर्शनों में बताई
गई हैं-(१) अर्ध गति सात्त्विक देवयोनियाँ (२) मध्यगति=राजस मनुष्य योनि (3) अधोगति = तमोगुणी पशु-पक्षी, कीट-पतङ्ग, वृक्षादि
योनियो । 'रहु अधमाधम अधगति पाई।' मा० ७.१०७.८ अधगो : सं० पु (अधः= नीचे+गो= इन्द्रिय)। पायु, मलत्यागेन्द्रिय ।
मा० ६.१५.८ अधजरति : वि० स्त्री० (१) (सं० अर्धजरती) अर्धवद्धा। (२) (सं० अर्ध
ज्वलंती) अधजली होती हुई । 'निकसि चिता तें अधजरति मानहुं पती परानि ।
दो० २५३ अधन : वि० (सं०) निर्धन । मा० १.१६१.४ अधबिच : क्रि० वि० (सं० अर्ध-वर्त्म>अ० अविच्च) आधे मार्ग में, बीचो-बीच
में । गी० ७.३.५ अधम : वि० (सं०) नीच, निम्न कोटि का, अधोगत । मा० १.१८.२ अधमउ : अधम भी। अधमउ मुकुट होई श्रुति गावा। मा० ३.१३.६ अषमाई : सं० स्त्री० (सं० अधमता) नीचता । ‘सहि सम अधिक न अध अधमाई।'
मा० २.२११.२ अधमाधम : अधर्मों में भी अधम, अत्यन्त नीच जो नीचवर्ग में भी नीच माना
जाता हो । मा० ७.१०७.८ अधमारे : वि. पु. (सं० अर्धमारित>प्रा० अद्धमारिय) जिन के मार डाले जाने
में कमी रह गई हो। मा० ५.१८.६ अधर : (१) वि० (सं०) निम्न, नीच, अवर । 'तीय अधरबुद्धि शनि ।' २.१६
(२) सं० पुं० । ओठ । मा० १.१३६.२