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तुलसी शब्द-कोश
चुकें : समाप्त होने पर, चूक जाने पर, खोदने के बाद । 'समय चुके पुनि का
पछिताने ।' मा० १.२६१.३ चुके : चुर्के । 'चुके अवसर मनहुं सुजनहि सुजन सनमुख होइ।' गी० ५.५.४ चुके : चुकइ । चूक जाय । 'अवसर कौड़ी जो चुके, बहुरि दिएं का लाख ।' दो०
३४४ चुचाते : वकृ००ब० । अतिशय स्राव करते, धारा बहाते । 'झूमत द्वार अनेक मतंग
जंजीर जरे मद अंबु चुचाते ।' कवि० ७.४४ चुचुकारि : पूकृ० । चू-चू ध्वनि करके। (१) बालक को दुलराने की ध्वनि । गी
१.११.२ (२) पशु को रोकने की ध्वनि । 'उतरि-उतरि चुचुकारि तुरंगनि
सादर जाइ जोहारे ।' गी० १.४६.१ चुचकारे : भूकृ००ब० । मुख ध्वनि विशेष से दुलराए हुए । गी० २.८७.२ चुटकी : सं०स्त्री० । अंगुलियों से की हुई ध्वनि विशेष-चुटचुटाहट । 'किलकि
किलकि नाचत चुटकी सुनि ।' गी० १.३२.५ /चन, चनइ : (सं० चिनोति>प्रा. चुणइ-बीनना, चयन करना या चुगना)
आ०प्रए । चुनता-ती है । 'मुकुताहल गुनगन चुनइ ।' मा० २.१२८ चुनि : पूकृ० । चुनकर, चयन करके । मा० ३.१.३ चुनिन : चुनी+संब० । चुनियों, जड़ाव की मूल्यवान् कणिकाओं । 'कनक चुनिन
सों लसित नहरनी लिए कर हो।' रा०न० १० (सं० 'चूणि' मूलत: चूर्ण-पर्याय है । परन्तु उससे निष्पन्न 'चुन्नी' या 'चुनी' सोने-चांदी आदि के उन दोनों का अर्थ आता है जो जड़े जाते हैं। उन दोनों से युक्त गोटे को भी 'चुनी' कहा
जाता है।) चुनौती : सं०स्त्री० (सं० चय+पत्री>प्रा० चुणवत्ती)-लड़ाई के लिए चयन
करने की चिट्ठी, ललकार, आह्वान । 'ताके कर रावन कहुं मनहुं चुनौती
दीन्हि ।' मा० ३.१७ चप : (१) वि० (सं० चुप-चुप मन्दायां गतो)। मौन, वाचंयम । 'चुपहिं रहे
रघुनाथ सकोची।' मा० २.२७०.३ (२) सं०स्त्री० । चुप्पी । 'देखि दसा चुप
सारद साधी ।' मा० २.३०७.२ चुपकि : पूकृ० । चुप्पी साध कर, मौन होकर । 'चुपकि न रहत, कह्यो कछु,
चाहत ।' कृ० ११ चुपचाप : वि०+क्रि०वि० (सं० चुप मन्दायां गतौ+चप सान्त्वने) । मौन शान्त ।
सब चुपचाप चले मग जाहीं।' मा० २.३२२.२