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तुलसी-शब्द-कोश
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चढ़हु : आ.मब० । चढ़ो, आरूढ होओ। 'तात चढ़हु रथ ।' मा० २.१८८.५ चढ़ा : भूकृ०० (प्रा० चडिअ) । आरुढ हुआ। मा० ५.१६.८ चढ़ाइ, य : पूकृ० । (१) चढ़ा कर =आरुढ करा कर । 'रथ चढ़ाइ देखराइ बन
फिरेहु ।' मा० २.८१ (२) तान कर । 'चाप चढ़ाइ बान संधाना ।' मा०
६.१३.८
चढ़ाइन्हि : आ०-भूकृ०स्त्री०+प्रब० । उन्होंने चढ़ाईं, तानी, संधान की । 'भाथीं
बांधि चढ़ाइन्हि धनहीं।' मा० २.१६१.४ चढ़ाइहि : आ०भ०प्रए। चढ़ाएगा=उपहार देगा। 'जो गंगा जलु आनि
चढ़ाइहि ।' मा० ६.३.२ चढ़ाइहौं : आ०भ० उए० । चढ़ाऊँगा=चढ़ने दूगा । 'नाथ न नाव चढ़ाइहौं जू ।'
कवि० २.६ चढ़ाई : भूकृ०स्त्री०ब० । आरुढ करायीं । 'कुरि चढ़ाई पालकिन्ह।' मा० १.३३८ चढ़ाई : (क) भूकृ०स्त्री० । आरुढ़ करायी। (ख) चढ़ाइ । चढ़ा कर । (१) भेंट
करके । 'दूजेउँ निज सिर सुरन चढ़ाई ।' मा० ६.२५.२ (२) स्वीकृत करके । 'लीन्हि आप मैं सीस चढ़ाई।' मा० ७.११२.१६ (३) आरुढ कराकर । ‘लिए
दुओ जन पीठि चढ़ाई ।' मा० ४.४१५ चढ़ाउब : भक००। (१) चढ़ाना, संधान करना । ‘रहउ चढ़ाउब तोरब भाई।'
मा० १.२५२.२ (२) चढ़ाना होगा (चढ़ाएँगे) । 'अजहुं अवसि रघुनंदन चाप
चढ़ाउब ।' जा०म०७१ चढ़ाएं' : चढ़ाए हुए (आकार में), संधान किये हुए (मुद्रा में) । 'अरुन नयन सर
चाप चढ़ाएँ।' मा० ४.६.२ चढ़ाए : भूक००ब० । (१) भेंट किये । 'सादर सिव कहुं सीस चढ़ाए।' मा०
६.६४.६ (२) आरुढ कराये । 'कबि बिनती रथ राम चढ़ाए।' मा० २.८३.१ चढ़ाय : चढाइ। चढ़ायो, यो : भूक०कए । (१) चढ़ाया=आरोहण कराया। 'तिहारोइ नामु
गयंद चढ़ायो।' कवि० ७.६० (२) प्रत्यञ्चायुक्त किया, ताना। 'चपरि
चढ़ायो चापु चंद्रमा ललाम को।' कवि० १.६ चढ़ावत : वकृ०० (प्रा० चडावंत)। चढ़ाता, चढ़ाते संधान करते । 'लेत
चढ़ावन बचत गाढ़ें ।' गी० १.२६१.७ चढ़ावन : सं०० (प्रा० चडावण)। चढ़ाना, संधान करना । 'चहन चपरि
सिव चाप चढ़ावन ।' गी० १.६०.५ चढ़ावनु : चढ़ावन+कए । चढ़ाना। 'राम चहत सिव चापहि चपरि चढ़ावन ।'
जा०म०६८
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