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तुलसी शब्द-कोश
ग्वाल : सं०० (सं० गोपाल>प्रा० गोपाल) । अहीर । कृ० १८ ग्वालि, ली : संस्त्री० (सं० गोपाली>प्रा० गोवाली) । ग्वालिन । कृ० ५ ग्वालिनि : ग्वाली। क० ४
घंट : सं०पु० (सं०) । वाद्यविशेष । 'चले मत्त गज घंट बिराजी।' मा० १.५०.२ घंटा : घंट । मा० १.३०१.१ घंटि : सं०स्त्री० (सं० घण्टा=घण्टिका>प्रा० घंटा=घंटिआ>अ० घंटी=घंटि)।
छोटा घंटा। मा० १.३०२.७ घई : सं०स्त्री० । गर्व, कुण्ड, गहरा प्रवाह का आवर्त । 'थके बचन पर न सनेह
सरि, पर्यो मानो घोर घई है ।' गी० २.७८.३ घट : सं०० (सं०) । (१) घड़ा, कलश । 'सजे जबहिं हाटक घट नाना ।' मा०
१.६६.३ (२) शरीर । 'जय जय अबिनासी सब घट बासी।' मा०
१.१८६ छं० Vघट घटइ : (१) (सं० घटते-घट चेष्टायाम>प्रा० घट्टइ-होना) आ०प्रए ।
होता है, घटना में प्रकट होता है, आ पड़ता है। 'दारुन दोष घटइ अब मोही।' मा० १.१६२ ४ (२) (सं० घट्टते-घट्ट चलने >प्रा० घट्टइ-कम होना) आ०प्रए० । कम होता है, क्षीण होता है। 'घटइ बढ़इ बिरहिनि दुखदाई ।'
मा० १.२३८.१ घटउ : आ०प्र० संभावना (सं० घट्टताम् >प्रा. घट्टउ) । चाहे क्षीण हो जाय ।
_ 'घटउ सकल बल देह । दो० ५६३ घटकर्ण : कुम्भकर्ण । रावण का भाई । विन० २८.५ घटज : कुम्भल, अगस्त्य मुनि । मा० २.२६७.२ घटजोनी : घटज (सं० घटयोनि) । मा० १.३३ घटत : वकृ००। (१) (सं० घटयत्) ? करता, सम्पन्न करता। 'घटत न काज
पराए ।' विन० २०१.१ (२) क्षीण होता । 'घटत न तेज। कृ० २६ घटति : घटत+स्त्री० । क्षीण होती। 'राम दूरि माया बढ़ति, घटति जानि मन
माह।' दो० ६६