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तुलसी शब्दकोश
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क्षत्रिय : सं०० (सं०) । क्षत्रवंशज, क्षत्रजातीय माता-पिता की सन्नति । विन०
५१.६ क्षुरधार : सं०स्त्री. (सं० क्षुरधारा) छुरे की धारा तद्वत् तीव्र काट करने वाली।
ऐसी तीव्र कि उस पर चलना असम्भव है, जिस से आत्मरक्षा असम्भव हो जाय यदि उस पर गति की जाय । · बिकटतर वक्र सुरधार प्रमदा।' विन० ६०.७
खंचाइ : पूक० । खींचकर, (रेखा) बनाकर । 'देख खेंचाइ कहउँ बलु भाषी।'
मा० २.१६.७ खेसेउ : भू.कृ.पु.कए० (सं० कसितः>प्रा० खसिओ>अ. खसियउ)। गिर __ गया, खिसक गया, पतित हुआ। 'सुरपुर तें जनु खसेउ जजाती।' मा०
२.१४८.६ ख : सं०० (सं०) । आकाश, शून्य । खग, खद्योत आदि में प्रयुक्त है। खंजन : सं०० (सं.)। खञ्जरीट, खड्चा पक्षी । मा० २.११७७ खंजरीट : सं०० (सं०) । खञ्जन । कृ० २२ खंड : सं०० (सं०) (१) टुकड़ा, टुकड़े । 'खंड खंड होइ हृदउ न गयऊ ।' मा०
२.१६२.१ (२) भाग, अंश । 'धरि कुधर खंड प्रचंड मर्कट...।' मा० ६.४१छं० खंडन : वि०० । विच्छेदकारी, विनाशक । 'खल खंडन मंडन रम्य छमा।' मा०
६.१११.२१ खंडनि : वि.स्त्री० । विच्छेदकारिणी, विनाश करने वाली। 'चंड भुजदंड खंडनि ।'
विन० १५.४ खंडहिं : आ०प्रब० (सं० खण्डयन्ति>प्रा० खंडंति>अ० खंडहिं)। काटकर टुकड़े
टुकड़े कर देते हैं । 'रघुबीर बान प्रचंड खंडहिं भटन्ह के उर भुज सिरा।' मा० ३.२० छं०१