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तुलसी शब्द-कोश
कैकेई : सं०स्त्री० (सं० कैकयी) । केकय राजकुमारी दशरथ को मध्यमा रानी।
मा० १.१६०.३ कैक : करि के । करके । तैसो कपि कौतुकी डेरात ढीले गात कैर्भ ।' कवि० ५.३ कैटभ : सं०पू० (सं.)। एक असुर जिसे सृष्टि के पूर्व प्रलय सागर में विष्णु ने
मारा था। मा० ६.४८ क कैटभारे : 'कैटभारि' का सम्बोधन (सं.) । हे कैटभ के शत्रु । गी० १.३८.३ कंधौं : अव्यय (सं० किं ध्रुवम् ) के+धौं । क्या निश्चय ही, क्या भला, अथवा
क्या। 'तुलसी सुटेस चापु कैधौं दामिनी कलापु कैधों चली मेरुतें कृसानु सरि
भारी है ।' कवि० ५.५ कैरव : कुमुद (सं.)। मा० २.१० कैलास : सं०पु० (सं.) । हिमालय पर्वतमाला का शिखिर विशेष । मा० १.५८ कैलासहि : कैलास में । 'जपहिं संभ कैलासहिं आए।' मा० १.१०३.३ कैलासा : कैलास । मा० १.५८.६ कैलासु, स : कैलास+कए । 'परम रम्य गिरिबर कैलासू ।' मा० १.१०५.८ कंवल्य : सं०० (सं०) । मुक्त दशा, माया रहित जीव की शुद्ध अवस्था, मोक्ष ।
मा० ७.११६.३ कैसा : कस । मा० ३.३५.६ कैसी : कसि । मा० १.७७.१ कैसें : क्रि०वि० । किस प्रकार से । ‘सो मो सन कहि जात न कसें ।' मा० १.३.१२ कैसे : 'कैसा' का रूपान्तर (अ० कइस=क इसय) । किस प्रकार के । 'घायल बीर ___ बिराजहिं कैसे ।' मा० ६.५४.१ कैसे उ : कैसे भी, किसी प्रकार के । 'कसेउ पावर पातकी।' विन० १६१.८ कैसेहुं : किसी प्रकार भी । 'एक बार कैसे हुं सुधि पावौं ।' मा० ४.१८.२ कसो : कैसो+कए। (१) कैसा। 'सुद्धता लेसु कसो।' विन० १०६.४
(२) के जैसा, के सदृश । 'सहित समाज गढ़ राँउ कसो भांडिगो।' कवि०
६.२४ केहूं : किसी प्रकार से । ज्यों का त्यों करके । 'पठयो है छपदु छबीले कान्ह केहूं
कहूं।' कवि०.१३५ को : (१) का+कए० । बंदउँ नाम राम रघुबर को।' मा० १.१६.१ (२) सर्व
नाम (सं० क:>प्रा० को)। कौन । 'को बड़ छोट कहत अपराधू ।' मा० १.१२१.३ (३) कोई । 'राम सो न साहेबु न कुमति कटाइ को।' कवि० ७.२२ (४) कौं। के लिए, के प्रति । 'भरत की मातु को भी ऐसो चहियतु है।' कवि० २.४ । 'मोसो दोस कोस को भुवन कोस दूसरो न ।' विन० २५८.२