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तुलसी शब्द-कोश
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कुलगुरु : सम्पूर्ण कुल का गुरु । (१) वंश का आचार्य (वसिष्ठ) । मा० २.२६३.२
(२) वंश का पूर्वपुरुष (सूर्य) । 'बिधुहि जोरि कर बिनवति कुलगुरु जानि ।'
बर० ४१ कुलघाती : (दे० घाती) । सम्पूर्ण वंश का विनाश करने वाला । मा० ५.५२.८ कुलदीपा : वि०० (सं० कुलदीप) । वंश में प्रकाश करने वाला=कुलश्रेष्ठ ।
मा० २.२८३.५ कुलदेवा : (सं० कुलदेव) । सम्पूर्ण वंश में पूज्य देव । मा० २.६.८ कुलपूज्य : सम्पूर्ण वंश में पूजनीय । मा० २.६.८ कुलबधू : कुलीन स्त्री, कुलङ्गना, कुल की मर्यादाओं का पालन करने वाली वधू ।
गी० १.३४.६ कुलब्दद्ध : वंश भर में बड़ा-बूढ़ा । मा० १.२८६ कुलमान्य : वंश भर में सम्मान योग्य =कुलपूज्य । मा० २.४६.३ कुलरीति : सम्पूर्ण वंश में प्रचलित रीति, परम्परागत मर्यादा । मा० १.३३६.१ कुलवंति : वि. स्त्री० (सं० कुलवती>प्रा० कुलवंती)। कुलीना। 'कुलवंति
निकारहिं नारि सती।' मा० ७.१०१ छं० कुलह : सं०स्त्री० (फ्रा०) । टोपी (आँखों का आवरण) । 'कुमत कुबिहग कुलह
जन खोली।' मा० २.२८.८ कुल हि : (१) कुल को। 'कहउँ सुभाउ न कुलहि प्रसंसो।' मा० १.२८४.४
(२) कुलह कुलही : कुलह । टोपी । 'कुलही चित्र, बिचित्र झंगूलीं।' गी० १.३१.५ कुलम्हण : कोलाहल । गी० १.४.६ कुलि : वि० (अरबी-कुल =तमाम, पूरा; सं० कुल्य = कुल समूह) सम्पूर्ण ।
'कलि कुचाल कुलि कलुष नसावन ।' मा० १.३५.१० कुलिपि : कुत्सित लिपि, प्रतिकूल लेख, दुर्भाग्य रेखा, 'लोपति बिलोकत कुलिपि भोंड़े
भाल की।' कवि० ७.१८२ कुलिस : सं०० (सं० कुलिश) । (१) वज्र, इन्द्र का आयुध । मा० १.११३.७
(२) पैरों की रेखा विशेष । 'रेख कुलिश ध्वज अंकुम सोहे।' मा० १.१६६.३ (३) लोहो विशेष । 'सुभग द्वार सब कुलिस कपाटा।' मा० १.२१४.१
(४) हीरा : 'मानिक मरकत कुलिस पिरोजा।' मा० १.२८८.४ कुलिसनि : कुलिस+संब० । कुलिश हीरों (ने)। 'मनहुं सोन सरसिज महें
कुलिसनि तड़ित सहित कृत बासा ।' गी० ७.१२.६ कुलिसरद : वज्र तुल्य दांतों वाला=राक्षस विशेष । मा० १.१८०