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तुलसी शब्द-कोश
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कनक : सं०० (सं०) । सुवर्ण मा० १.३५६.१ कनकउ : सुवर्ण भी । 'कनक उ पुनि पषान ते होई।' मा० १.८०.६ कनककासिपु : (कनक=हिरण्य)-हिरण्यकशिपु= दैत्यराज, प्रह्लाद का पिता ।
मा० १.२७ कनकफूल : कर्णाभरण विशेष जो पुष्पाकार बनते हैं = कनफूल । गी० १.७३.४ कनकमय : वि० (सं०) । स्वर्ण घटित, प्रचुर सुवर्णयुक्त । 'तासु कनकमय सिखर
सुहाए।' मा० ७.५६.८ कनकलोचन : (कनक =हिरण्य-+लोचन =अक्ष) हिरण्याक्ष (हिरण्यकाशिपु का ____ अनुज) । मा० २.२६७.५ कनहिं : कनक पर, सुवर्ण में । 'कन कहिं बान चढ़इ जिमि दाहें।' मा० २.२०५.५ कनकु : कनक+कए । सुवर्ण । 'कसे कनकु मनि पारिखि पाएँ ।' मा० २.२८३.६ कनखियनु : कनाखिया+संब० (सं० कटाक्ष>प्रा. कडक्ख>अ० कडक्खिया)।
कटाक्षों में =नेत्रकोण दर्शन में। 'चितबनि बसति कनखियनु अँखियनु बीच ।'
बर० ३०
कनगुरिया : सं० स्त्री० (सं० कनाङ्ग लिका>प्रा० कणंगुलिया)। छोटी अँगुली
(कनिष्ठा) । 'कनगुरिया के मुदरी कंकन होइ ।' बर० ३८ कनसुई : सं०स्त्री० (सं० कणसूची>प्रा० कणसूई) । आटे या गोबर की गौरी
जिसे चलनी में घमाकर स्त्रियां औंधा करती हैं ; यदि 'कनसुई' सीधी निकलती है तो शकुन, उत्तम माना जाता है । 'लेत फिर कनसूई सगुन सुभ ।' गी०
१.७०.५ कनाउड़ो : कनउड =कनाउड+कए । कृतज्ञ, आभारी । 'जाचक जगत कनाउड़ो।'
दो० २८६ कनावड़े : कनाउड़=कनावड़+ब० । कृतज्ञ । 'जनक दसरथ किए प्रेम कनावडं ।'
जा०म० छं० १६ कनिगर : वि०पू० । 'कानि' करने वाला, आत्मप्रतिष्ठा वाला, स्वाभिमानी। 'देखिए ___ दास दुखी तोसे कनिगर के ।' हनु० ३३ कनियाँ : कनिया = गोद में । 'भूपं लिये कनियाँ ।' गी० १.३४.१ कनी : कनी+बहु० । कणिकाएँ, बूंदें । 'झलकी भरि भाल कनी जल की ।' कवि
२.११ कनी : संस्त्री० (सं० कणिका>प्रा० कणिया>अ० कणी) = कण । (१) छोटी
बूंद । 'अरुन तन सोनित कनी।' मा० ६.७१ छं० (२) छोटा कण । 'रज
कनी ।' मा० ६.८३ छं० कन : कण को, अन्नादि के खण्ड को। 'मोद पाइ कोदो कनै ।' गी० ५.४०.४