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तुलसी शब्द-कोश
उपदेसु, सू : उपदेस+कए । अनन्य उपदेश । 'कासी मुकुति हेतु उपदेसू ।' मा०
१.१६.३ उपदेसे : भू००० (ब०)। सिखाये, समझाये-बुझाये । 'मुनि बहुभांति भरत
उपदेसे ।' मा० २.१६६.८ उपदेसेउ : भूक०० कए । सिखाया। 'सुदर गौर सुबिप्रबर अस उपदेसेउ ___ मोहि ।' मा० १.७२ उपदेसेन्हि : आ० भू०००+प्रब० । उन्होंने उपदेश दिया। 'दच्छ सुतन्ह
उपदेसेन्हि जाई ।' मा० १.७६.१ उपदेसेहु : आभू०००+मब० । तुमने उपदेश किया। ‘एहि मिस मोहि
उपदेसे हु राम कृपा-सुख-पुज ।' मा० ६.८० उपद्रव : सं०० (सं.)। (१) उत्पात, वेगयुक्त अयोग्य कार्यकलाप । 'करहिं उपद्रव असुर निकाया।' मा० १.१८३.४ (२) बड़े रोग से उत्पन्न सहायक
रोग । (३) बाधा, विघ्न । 'करहिं उपद्रव मुनि दुख पावहिं ।' मा० १.२०६.४ उपधान : सं०पू० (सं०) । उपबर्हण, तकिया। 'बिबिध बसन उपधान तुराई।'
मा० २.६१.१ उपनिषद : सं०स्त्री० (सं० उपनिषद्) । अज्ञान-नाशक ब्रह्मविद्या, वेदान्त, वैदिक
ज्ञान काण्ड सम्बन्धी ग्रन्थ विशेष; तत्त्व ज्ञान परक ग्रन्थ, उनसे उत्पन्न ब्रह्म
ज्ञान । मा० १.४६.२ उपपातक : सं०० (सं.)। दे० पातक । ब्रह्महत्या, सुरापान्न, स्तेय (चोरी),
गुरुपत्नी गमन तथा इन चारों का या किसी का संसर्ग-ये पांच महापातक हैं। इनके तुल्य पातक हैं-स्त्री बाल वध, गौवध, गृहदाह आदि । इन दोनों कोटियों से न्यून पातक उपपातक हैं-गुरुजनों के आदेश का उल्लंघन, गुप्त षड्यन्त्र
आदि । मा० २.१६७.७ तथा पूरा प्रसंग । उपबन : सं०पू० (सं० उपवन) । उद्यान, बगीचा । मा० ४.२४ उपबरहन : सं०० (सं० उपबहण) । उपधान, तकिया। मा० १.३५६.३ उपबास, सा : सं०० (सं० उपवास) । अनशन व्रत। मा० १.७४.५ उपबियो : भू० कृ०पु०कए । अङकुरति, प्रकट, उदित । 'सब को सुकृत उपबियो
है।' गी० १.१०.२ उपबीत : सं०पु० (सं० उपवीत) । (१) जनेऊ, बायें कन्धे से ऊपर और दाहिनी
बाँह के नीचे का द्विजातीय परिधेय विशेष । 'नयन तीनि उपबीति भुजंगा।'
मा० १.६२.३ (२) उपनयन-संस्कार । मा० १.३६१ छं० । उपमा : सं०स्त्री० (सं.) (१) सादृश्यपरक काव्यालंकार विशेष । मा० १.३७.३
(२) उपमान । 'सब उपमा कबि रहे जुठारी।' मा० १.२३०.८